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________________ प्रस्तावना 17 की पूर्णमासी को उस मास का प्रथम नक्षत्र कुल संज्ञक, दूसरा उपकुल संज्ञक और तीसरा कुलोपकुल संज्ञक होता है । इस वर्णन का प्रयोजन उस महीने के फलादेश से सम्बन्ध रखता है । इस ग्रन्थ में ऋतु, अयन, मास, पक्ष, नक्षत्र और तिथि सम्बन्धी चर्चाएँ भी उपलब्ध हैं । समवायांग में नक्षत्रों की ताराएँ, उनके दिशाद्वार आदि का वर्णन है । कहा गया है – “कत्तिआइया सत्त णवत्ता पुव्वदारिआ । मह| इया सत्तणक्खत्ता दाहिण दारिआ । अणुराहाइआ सत णक्खत्ता अवदारिया । धणिट्ठाइआ सत्तणक्खत्ता उत्तरदारिआ । " —सं० अं० सं० 7 सू० 5 अर्थात् कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा ये सात नक्षत्र पूर्वद्वार; मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति और विशाखा दक्षिणद्वार; अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित् और श्रवण ये सात नक्षत्र पश्चिमद्वार एवं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी और भरणी ये सात नक्षत्र, उत्तरद्वार वाले हैं । समवायांग 1/6, 2/4, 3/2, 4/3, 5/9 और 6/7 में आयी हुई ज्योतिष चर्चा भी महत्त्वपूर्ण है । ठाणांग में चन्द्रमा के साथ स्पर्शयोग करने वाले नक्षत्रों का कथन किया है । बताया गया है' – 'कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा ये आठ नक्षत्र स्पर्शं योग करने वाले हैं।" इस योग का फल तिथि के अनुसार बतलाया गया है । इसी प्रकार नक्षत्रों की अन्य संज्ञाएं तथा उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूर्व दिशा की ओर से चन्द्रमा के साथ योग करने वाले नक्षत्रों के नाम और उनके फल विस्तारपूर्वक बतलाये गये हैं । अष्टांग निमित्तज्ञान की चर्चाएं भी आगम ग्रन्थों में मिलती हैं । गणित और फलित ज्योतिष की अनेक मौलिक बातों का संग्रह आगम ग्रन्थों में है । फुटकर ज्योतिष चर्चा के अलावा सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरण्डक, अंगविज्जा, गणिविज्जा, मण्डलप्रवेश, गणितसारसंग्रह, गणितसूत्र, गणितशास्त्र, जोइसार, पंचांगनयन विधि, इष्टतिथि सारणी, लोकविजय यन्त्र, पंचांगतत्त्व केवलज्ञान होरा, आयज्ञानतिलक, आयसद्भाव, रिष्टसमुच्चय, अर्धकाण्ड, ज्योतिष प्रकाश, जातकतिलक, केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि, नक्षत्रचूड़ामणि, चन्द्रोन्मीलन और मानसागरी आदि सैकड़ों ग्रन्थ उपलब्ध हैं । विषय- विचार दृष्टि से जैनाचार्यों के ज्योतिष को प्रधानतः दो भागों में विभक्त किया है । एक गणित- सिद्धान्त और दूसरा फलित-सिद्धान्त । गणित 1. अट्ठ नक्खत्ताणं चेदेण सद्धि पमड्ढं जोगं जोएइ तं० कत्तिया, रोहिणी, पुणवस्सु, महा, चित्ति, विसाहा, अणुराहा जिट्ठा ठा० 8, सु 100
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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