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________________ 86 भद्रबाहुसंहिता उत्तर दिशा की सन्ध्या राजा के लिए जयसूचक है और दक्षिण दिशा की सन्ध्या पराजयसूचक होती है । पूर्व दिशा की सन्ध्या क्षेमकुशलसूचक और पश्चिम दिशा की सन्ध्या भयंकर होती है ।।7।। आग्नेयी अग्निमाख्याति नैऋती राष्ट्रनाशिनी। वायव्या प्रावृष' हन्यात् ईशानी च शुभावहा ॥8॥ अग्निकोण की सन्ध्या अग्निभय कारक, नैऋत्य दिशा की सन्ध्या देश का नाश करने वाली, वायु कोण की सन्ध्या वर्षा की हानिकारक एवं ईशान कोण की सन्ध्या शुभ होती है ॥8॥ एवं सम्पत्करायेषु' नक्षत्रेष्वपि निदिशेत् । जयं सा कुरुते सन्ध्या साधकेषु समुत्थिता ॥9॥ इसी प्रकार सम्पत्ति का लाभ आदि कराने वाले नक्षत्रों में भी निर्देश करना चाहिए, इस प्रकार की सन्ध्या साधक को जयप्रदा होती है। तात्पर्य यह है कि साधक पुरुष को नक्षत्रों में भी शुभ सन्ध्या का दिखाई देना जयप्रद होता है ।।9।। उदयास्तमनेऽर्कस्य यान्यभ्राण्यतो भवेत्। सम्प्रभाणि सरश्मीनि तानि सन्ध्या विनिदिशेत् ॥10॥ सूर्य के उदयास्त के समय बादलों पर जो सूर्य की प्रभा पड़ती है, उस प्रभा से बादलों में नाना प्रकार के वर्ण उत्पन्न हो जाते हैं, उसी का नाम सन्ध्या है।।10॥ अभ्राणां यानि रूपाणि सौम्यानि विकृतानि च । सर्वाणि तानि सन्ध्यायां तथैव प्रतिवारयेत् ॥11॥ ___ अभ्र अध्याय में जो उनके अच्छे और बुरे फल निरूपित किये गये हैं, उस सबको इस सन्ध्या अध्याय में भी लागू कर लेना चाहिए ।।11।। एवमस्तमने काले या सन्ध्या सर्व उच्यते। लक्षणं यत् तु सन्ध्यानां शुभं वा यदि "वाऽशुभम् ॥12॥ उपर्युक्त सूर्योदय की सन्ध्या के लक्षण और शुभाशुभ फलानुसार अस्तकाल 1. वर्पणं नु । 2. संयुक्त रागेषु मु. C. । 3. विनतानि मु. C. 14. सा सन्ध्या मु० C.1 5. प्रनिचारयेत् मु० । 6.-7.-8. उदये चापि मु० C. 1 9. स्यावराणां शुभाशुभम् मु० C.1 10. च मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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