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________________ पंचमोऽध्यायः वायव्यकोण की बिजली थोड़ी वर्षा करने वाली और उत्तर दिशा की विजली चाहे किसी भी वर्ण की क्यों न हो; अथवा रूक्ष भी हो तो भी जलवृष्टि करने वाली होती है ।। 8 ।। या तु पूर्वोत्तरा विद्युत् दक्षिणा' च पलायते । चरत्यूर्ध्व च तिर्यक्ंस्था साऽपि श्वेता जलवहा ॥१॥ Sarah की बिजली तिरछी होकर पूर्व में गमन करे और दक्षिण में जाकर विलीन हो जाय तथा श्वेत रंग की हो तो वह जल की वृष्टि करने वाली होती है ॥9॥ तथैव मधो वाऽपि स्निग्धा रश्मिमती भृशम् । सघोषा चाप्यघोषा वा दिक्षु सर्वासु वर्षति ॥10॥ इसी प्रकार ऊपर-नीचे जाने वाली, स्निग्धा और बहुत रश्मि वाली शब्द करती हुई अथवा शब्द न भी करने वाली बिजली सभी दिशाओं में वर्षा करने वाली होती है ॥10॥ शिशिरे चापि वर्षन्ति रक्ताः पीताश्च विद्युतः । नीला: श्वेता वसन्तेषु न वर्षन्ति कथंचन ॥11॥ 65 यदि शिशिर - माघ, फाल्गुन में नीले और पीले रंग की बिजली हो तो वर्षा होती है तथा वसन्त — चैत्र, वैशाख में नील और श्वेत रंग की बिजली हो तो कदापि वर्षा नहीं होती ॥11॥ हरिता मधुवर्णाश्च ग्रीष्मे रूक्षाश्च निश्चलाः । भवन्ति ताम्रगौराश्च वर्षास्वपि निरोधिकाः ॥12॥ - हरे और मधु रंग की रूक्ष और स्थिर बिजली ग्रीष्म ऋतु – ज्येष्ठ, आषाढ़ में चमके तो वर्षा नहीं होती तथा इसी प्रकार वर्षा ऋतु – श्रावण, भाद्रपद में ताम्रवर्ण की बिजली चमके तो वर्षा का अवरोध होता है ।।12।। -- शारद्यो नाभिवर्षन्ति नीला वर्षाश्च विद्युतः । हेमन्ते श्यामता प्रस्तुतडितो निर्जलाः स्मृताः ॥13॥ शरद् ऋतु -- आश्विन, कार्तिक में नील वर्ण की बिजली चमके तो वर्षा नहीं होती और हेमन्त --- मार्गशीर्ष पौष में यदि श्याम और ताम्रवर्ण की बिजली 1. दक्षिणं मु० । 2. तिर्यग् सा, मु० । 5. हेमन्ते ताम्रवर्णास्तु तडितो निर्जला स्मृता: 3. वार्धमथाऽल्पापि मु० A 1 4 वा मु० । मु० C. ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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