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________________ 50 भद्रबाहुसंहिता यदा गृहमवच्छाद्य परिवेष: प्रकाशते। अचिरेणैव कालेन संकुलं' तत्र जायते ॥33॥ यदि परिवेष ग्रह को आच्छादित करके दिखलाई दे तो वहां शीघ्र ही सब आकुलता से व्याप्त हो जाते हैं ।।33।। 'यदि राहुमपि प्राप्तं परिवेषो रुणद्धि चेत् । तदा सुवृष्टिर्जानीयाद् व्याधिस्तत्र भयं भवेत् ॥34॥ यदि परिवेष राह को भी ढक ले-घेरे के भीतर राह ग्रह भी आ जाय-- तो अच्छी वर्षा होती है, परन्तु वहाँ व्यधि का भय बना रहता है ।। 3411 पूर्वसन्ध्यां नागराणामागतानां च पश्चिमा। अर्द्धरात्रेषु राष्ट्रस्य मध्याह्न राज्ञ उच्यते ॥35॥ पूर्व की सन्ध्या का फल स्थायी-नगरवासियों को होता है और पश्चिम की सन्ध्या का फल आगन्तुक-यायी को होता है। अर्धरात्रि का फल देश भर को और मध्याह्न का फल राजा को प्राप्त होता है ।।35॥ धूमकेतुं च सोमं च नक्षत्रं च रुणद्धि हि। परिवेषो यदा राहुं तदा यात्रा न सिध्यति ॥36॥ यदि परिवेष धमकेतु-पूच्छलतारा, चन्द्रमा, नक्षत्र और राह को आच्छादित करे तो यायी-आक्रमण करने वाले राजा की यात्रा की सिद्धि नहीं होती ।।36॥ यदा तु ग्रहनक्षत्रे परिवेषो रुणद्धि हि। अभावस्तस्य देशस्य विज्ञेयः पर्युपस्थितः ॥37॥ यदि परिवेष ग्रह और नक्षत्रों को रोके तो उस देश का अभाव हो जाता हैउस देश में संकट होता है ।।37॥ त्रयो यत्रावरुद्ध्यन्ते नक्षत्रं चन्द्रमा ग्रहः । त्यहाद् वा जायते वर्ष मासाद् वा जायते भयम् ॥38॥ नक्षत्र, चन्द्रमा और मंगल, बुध, गुरु और शुक्र इन पाँच ग्रहों में से किसी एक को एक साथ परिवेष अवरुद्ध करे तो तीन दिन में वर्षा होती है अथवा एक 1. मंग्राम । 2. राहुणा वै यदा सार्द्ध परिवेषो रुणाद्धि हि । तदा भ्रष्टं विजानियात् व्याधिमत्र भयं भवेत् ॥34।। मु. C. । 3. आगन्तूनां मु०। 4. रावेषु मु० । 5. त्रीणि यन विरुध्यन्ते, नक्षवं चन्द्रमा ग्रहः । म ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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