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________________ 48 भद्रबाहुसंहिता जिस दिशा में सूर्य का परिवेप शीघ्र हटे और जिस दिशा में बढ़ता जाय उस दिशा में राष्ट्र की गायों का लोप होता है -गायों का नाश होता है ।।21।। अंशुमाली' यदा तु स्यात् परिवेषः समन्ततः । तदा सपुरराष्ट्रस्य देशस्य रुजमादिशेत् ॥22॥ सूर्य का परिवेष यदि सूर्य के चारों ओर हो तो नगर, राष्ट्र और देश के मनुष्य महामारी से पीड़ित होते हैं ।। 22॥ ग्रहनक्षत्रचन्द्राणां परिवेषः प्रगह्यते। अभीक्ष्णं यत्र वर्तेत' तं देशं परिवर्जयेत् ॥23॥ ग्रह–सूर्यादि मात ग्रह, नक्षत्र - अश्विनी, भरणी आदि 28 नक्षत्र और चन्द्रमा का परिवेष निरन्तर बना रहे और वह उस रूप में ग्रहण किया जाय तो उस देश का परित्याग कर देना चाहिए, यतः वहाँ शीघ्र ही भय उपस्थित होता है ।।23।। परिवेषो विरुद्धषु नक्षत्रेषु ग्रहेषु च । कालेषु वृष्टिविज्ञेया भयमन्यत्र निदिशेत् ॥24॥ वर्षाकाल में ग्रहों और नक्षत्रों की जिस दिशा में परिवेष हों उस दिशा में वृष्टि होती है और अन्य प्रकार का भय होता है ।।24। अभ्रशक्तिर्यतो गच्छेत् तां दिशं त्वभियोजयेत्। रिक्ता वा विपुला' चाग्रे जयं कुर्वीत शाश्वतम् ॥25॥ जल से रिक्त अथवा जल से परिपूर्ण बादलों की पंक्ति जिस दिशा की ओर गमन करे उस दिशा में शाश्वत जय होती है ।।25।। यदाऽभ्रशक्तिर्दश्यत् परिवेषसमन्विता'। नागरान् यायिनो हन्युस्तदा यत्नेन संयुगे ॥26॥ यदि परिवेष महित अभ्रशवित-बादल दिखलाई पड़ें तो आक्रमण करने वाले शत्रु द्वारा नगरवासियों का युद्ध में विनाश होता है, अतः यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए ।।26।। --.-........ -- - 1. अर्थमाली आ० । 2. वर्तेत् मु० । 3. आदिशेत् मु० B. D.। 4. रक्तां मु० । 5. विपुलां मु० । 6. कुर्वीत मु०। 7. समुत्थिता मु० C.। 8. गायि नो, याविनः मु० A. D., याविनं मु० C।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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