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________________ 46 भद्रबाहुसंहिता यह है कि जल की वर्षा न होकर वायु तेज चलती है, जिसमे फूल की वर्षा दिखलाई पड़ती है ।।9।। यदा तु सोममुदितं परिवेषो रुणद्धि हि । जीमूतवर्णस्निग्धश्च महामेघस्तदा भवेत् ॥10॥ यदि चन्द्रमा का परिवेप उदयप्राप्त चन्द्रमा को अवरुद्ध करता है—ढक लेता है और वह मेघ के समान तथा स्निग्ध हो तो उत्तम वृष्टि होती है ।' 100 अभ्युन्नतो यदा श्वेतो रूक्षः सन्ध्यानिशाकरः। अचिरेणैव कालेन राष्ट्र चौरविलुप्यते ॥11॥ उदय होता हुआ सन्ध्या के समय का चन्द्रमा यदि श्वेत और रूक्ष वर्ण के परिवेष से युक्त हो तो देश को चोगें के उपद्रव का भय होता है ।।11। चन्द्रस्य परिवेषस्तु सर्वरात्रं यदा भवेत्। शस्त्रं जनक्षयं चैव तस्मिन् देशे विनिदिशेत् ॥12॥ यदि सारी रात -उदय से अस्त तक चन्द्रमा का परिवेष रहे तो उस प्रदेश में परस्पर कलह-मारपीट और जनता का नाश सूचित होता है ।।12।। भास्करं तु यदा रूक्ष: परिवेषो रुणद्धि हि। तदा मरणमाख्याति नागरस्य महीपतेः ॥13॥ यदि सूर्य का परित्रेप रूक्ष हो और वह उसे ढक ले तो उसके द्वारा नागरिक एवं प्रशासकों की मृत्यु की सूचना मिलती है ।। 1 3।। आदित्यपरिवेषस्तु यदा सर्वदिनं भवेत् । क्षुद्भयं जनमारिञ्च शस्त्रकोपं च निदिशेत् ॥14॥ सूर्य का परिवेप मारे दिन उदय मे अस्त तक बना रहे तो क्षुधा का भय, मनुष्यों का महामारी द्वारा मरण एवं युद्ध का प्रकोप होता है ।।1411 हरते सर्वसमस्यानामीतिर्भवति दारुणा। वक्षगुल्मलतानां च वर्तनीनां तथैव च ॥15॥ उक्त प्रकार के परिवेप से सभी प्रकार के धान्यों का नाश, घोर ईति-भीति और वृक्षों, गुल्मों-झुरमुटों, लताओं तथा पथिकों को हानि पहुंचती है ।।15।। 1. सागरस्य आ० । 2. तस्मिन्नु त्पानदर्शने मु०C ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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