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________________ 12 भद्रबाहुसंहिता या कम अंगों वाली, अधिक रोम वाली या सर्वथा निर्लोम कन्या के साथ विवाह नहीं करना चाहिए । इस कथन से लक्षण और व्यंजन दोनों ही निमित्तों का स्पष्ट संकेत मिलता है। इसी अध्याय के 9-10 श्लोक भी लक्षणशास्त्र पर प्रकाश डालते हैं। 'लोष्टम तणच्छेदी' (4,71) में शकुनों की ओर संकेत किया गया है। आकालिक अनध्यायों का विवेचन करते हुए 'विद्य त-स्तनितवर्षेषु महोल्कानां च सम्प्लवे' (4,103), "निर्घात भूमिचलने ज्योतिषां चोपसर्जने" (4,105), "नीहारे बाणशके" (4,113) एवं "पांसुवर्षे दिशा दाहे" (4,115) का उल्लेख किया है। ये सभी श्लोक शकुनों से सम्बन्ध रखते हैं। अतः अनध्याय प्रकरण संहिता का विकसित रूप है। "न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न नक्षत्रांगविद्यया" (6,50) में उत्पात, निमित्त, नक्षत्र और अंगविद्या का वर्णन आया है । इस प्रकार मनुस्मृति में संहिताशास्त्र के बीजसूत्र प्रचुर परिमाण में विद्यमान हैं। याज्ञवल्क्य स्मृति में नवग्रहों का स्पष्ट उल्लेख वर्तमान है । क्रान्तिवृत्त के द्वादश भागों का भी निरूपण किया गया है, इस कथन से मेषादि द्वादश राशियों की सिद्धि होती है । श्राद्धकाल अध्याय में वृद्धियोग का भी कथन है, इससे संहिताशास्त्र के 27 योगों का समर्थन होता है । याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रायश्चित्त अध्याय में-"प्रहसंयोगजैः फलैः” इत्यादि वाक्यों द्वारा ग्रहों के संयोगजन्य फलों का भी कथन किया गया है । किस नक्षत्र में किस कार्य को करना चाहिए, इसका वर्णन भी इस ग्रन्थ में विद्यमान है। आचाराध्याय का निम्न श्लोक, जिस पर से सातों वारों का अनुमान विद्वानों ने किया है, बहुत प्रसिद्ध है सूर्यः सोमो महीपुत्रः सोमपुत्रो बृहस्पतिः । शुक्र: शनैश्चरो राहुः केतुश्चंते ग्रहाः स्मृताः ॥ महाभारत में संहिता-शास्त्र की अनेक बातों का वर्णन मिलता है । इसमें युग-पद्धति मनुस्मृति जैसी ही है। सत् युगादि के नाम, उनमें विधेय कृत्य कई जगह आये हैं। कल्पकाल का निरूपण शान्तिपर्व के 183वें अध्याय में विस्तार से किया गया है । पंचवर्षात्मक युग का कथन भी उपलब्ध है। संवत्सर, परिवत्सर इदावत्सर, अनुवत्सर एवं इद्वत्सर-इन पांच युग सम्बन्धी पाँच वर्षों में क्रमश: पांचों पाण्डवों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है अनुसंवत्सरं जाता अपि ते कुरुसत्तमाः। पाण्डुपुत्रा व्यराजन्त पञ्चसंवत्सरा इव ।। -अ० १०, अ० 124-24 पाण्डवों को वनवास जाने के उपरान्त कितना समय हुआ, इसके सम्बन्ध में भीष्म दुर्योधन से कहते हैं
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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