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________________ तृतीयोऽध्यायः यस्यापि जन्मनक्षत्रं उल्का गच्छेच्छरोपमा । विदारणा तस्य वाच्या व्याधिना वर्णसंकरः ॥6॥ जिसके जन्म-नक्षत्र में बाणसदृश उल्का गिरे तो उस व्यक्ति के लिए विदारण- घाव लगने, चीरे जाने का फल मिलता है और नाना वर्णरूप हो तो व्याधि प्राप्त होने की सूचना समझनी चाहिए ||61|| 31 उल्का येषां यथारूपा दृश्यते प्रतिलोमतः । तेषां ततो भयं विन्द्यादनुलोमा शुभागमम् ॥62॥ विलोम मार्ग से जैसे रूप की उल्का जिसे दिखाई दे तो उसको भय होगा, ऐसा जानना चाहिए और अनुलोम गति से दिखलाई दे तो शुभरूप जानना चाहिए 162 || उल्का यत्र प्रसर्पन्ति भ्राजमाना दिशो दश । सप्तरात्रान्तरं वर्षं दशाहादुत्तरं भयम् ॥163॥ जिस स्थान पर उल्का फैलती हुई दिखाई दे तो वहाँ भी जनता को दसों दिशाओं में भागना पड़ता है— उपद्रव के कारण दुखी हो इधर-उधर जाना पड़ता है । यदि सात रात्रि के मध्य में वर्षा हो जाय तो इस दोष का उपशम हो जाता है, अन्यथा दस दिन के पश्चात् उपर्युक्त भयरूप फलादेश घटित होता है ।163।। पापासूल्कासु यद्यस्तु यदा देव प्रवर्षति । प्रशान्तं तद्भयं विन्द्याद् भद्रबाहुवचो यथा ॥1641 पापरून उल्कापात के पश्चात् मेघ वर्ष जाये - वर्षा हो जाय तो भय को शान्त हुआ समझना चाहिए, इस प्रकार भद्रबाहु स्वामी का कथन है |1641 'यथाभिवृष्याः स्निग्धा यदि शान्ता निपतन्ति याः । उल्कास्वाशु भवेत् क्षेमं सुभिक्षं मन्दरोगवान् ॥1651 अभिवृष्य, स्निग्ध और शान्त उल्का जिस दिशा में गिरती है, उस दिशा में वह शीघ्र क्षेम-कुशल सुभिक्ष करती है, परन्तु थोड़ा-सा रोग अवश्य होता है ।। 65 यथामार्ग यथावृद्धि यथाद्वारं यथाऽऽगमम् । यथाविकारं विज्ञेयं ततो ब्रूयाच्छुभाशुभम् ॥66॥ 1. सप्ताहाभ्यन्तरे मु० C. 12. यथातिवृष्टिः स्निग्धा च दिशि शान्ता पतन्ति या मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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