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________________ 1222 भद्रबाहुसंहिता सिंह- व्याघ्र-वराहोष्ट्र श्वानद्वीपि - खरोपमाः । शूलपट्टिशसंस्थाना धनुर्वाण- गदा' मयाः ॥7॥ पाशवज्रा सिसदृशाः परश्वधेन्दुसन्निभाः । गो'धा-सर्प-शृगालानां सदृशाः शल्यकस्य च ॥8॥ मेबाज महिषाकाराः काका कृतिवृकोपमाः । शश'मार्जार-सदृशाः पक्ष्य कोदग्रसन्निभाः ॥५॥ ऋक्ष-वानरसंस्थानाः कबन्धसदृशाश्च याः । अला'तचक्रसदृशा 'वक्राक्ष प्रतिमाश्च' या ' ॥1ou शक्तिलाङ गूलसंस्थाना" यस्याश्चोभयतः शिरः । त्रास्तन्यमाना नागाभाः प्रपतन्ति" स्वभावतः॥11॥ सिंह, व्याघ्र, चीता, शूकर, ऊंट, कुत्ता, तेंदुआ, गदहा, त्रिशूल, पट्टिश – एक प्रकार का आयुध, धनुष, बाण, गदा, फरसा, वज्र, तलवार, फरसा - अर्द्धचन्द्राकार कुल्हाड़ी, गोह, सर्प, शृगाल, भाला, मेढ़ा, बकरा, भैंसा, कौआ, भेड़िया, खरगोश, बिल्ली, अत्यन्त ऊँचे उड़नेवाले पक्षी – गृद्ध आदि, रीछ, बन्दर, सिर कटे हुए धड़, कुम्हार का चाक, टेढ़ी आँखवाला, शक्तिआयुध विशेष, हल इन सबके आकार वाली और दो सिरवाली तथा हाथी के आकारवाली उल्काएं स्वभाव से गिरती हैं ।। 7- 11।। उल्काऽशनिश्च विद्युच्च सम्पूर्ण कुरुते फलम् । पतन्ती जनपदान् त्रीणि उल्का तीव्र " प्रबाधते ॥12॥ उल्का, अशनि और विद्य ुत् ये तीनों पूर्ण फल देती हैं और इन तीनों के गिरने से देशवासियों को पूर्ण बाधा होती है ।।12।। यथावदनुपूर्वेण तत् प्रवक्ष्यामि तत्त्वतः । अग्रतो देशमार्गेण मध्येनानन्तरं ततः ॥13॥ पुच्छेन पृष्ठतो देशं पतन्त्युत्का विनाशयेत् । मध्यमा न प्रशस्यन्ते नभस्युल्काः पतन्ति याः ॥14॥ 1. द्वीपिश्वन मु० । 2. गदनिभाः मृ० 3 शशमार्जारसदृशाः पक्षकोदग्र सन्निभाः, मु० । 4. गोधा सपंगलाभ्याम् मु । 5. बालान मु] A. 16. क्रव्यादा मु C. D. I 7. सदृशः मुळे C. । 8. ध्रु याः मु० C. 19. संकापा आ० । 10. प्रयतन्ति मु० । 11. प्रबोधते मु० A. B. I
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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