SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में यह भी स्पष्ट करना उचित है कि प्रमुख विद्वान डॉ० सागरमलजी जैन एवं डॉ0 धर्मचन्द जैन ने भूमिका एवं आमुख में उल्लेख किया है कि लोढ़ाजी का विवेचन आगम संगत है। उनके प्रयास आगमिक आधार और मौलिकता से अभिन्न हैं । श्री लोढ़ा सा. की जीवादि नवतत्त्वों पर क्रमशः 1. जीव - अजीव तत्त्व, 2. पुण्य-पाप तत्त्व, 3. आस्रव - संवर तत्त्व एवं 4. निर्जरा तत्त्व पुस्तकें पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं। उसी क्रम में यह 'बंध तत्त्व' प्राकृत भारती अकादमी के ..... पुष्प के रूप में प्रकाशित की जा रही है। हमें आशा है कि लेखक की यह 'बंध तत्त्व' पुस्तक भी नूतन व्याख्या के माध्यम से गुत्थियों को सुलझाने में सहायक सिद्ध होगी । पुस्तक के लेखक श्री लोढ़ा सा., भूमिका लेखक प्रोफेसर डॉ. सागरमल जी जैन, शाजापुर एवं सम्पादक डॉ. धर्मचन्द जी जैन, जोधपुर का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करते हुए हमें महती प्रसन्नता है । पुस्तक का कम्प्यूटरीकरण करने हेतु श्री कमलेश मेहता धन्यवाद के पात्र हैं। VIII देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy