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________________ विषय-कषाय की अतिगृद्धता नारकीय गति की द्योतक एवं जनक है। प्राप्त विषय-भोग में गृद्धता एवं मूर्छा होने तथा उसी को जीवन मानने पर जड़ता जैसी स्थिति को तिर्यंच गति कहते हैं। विषयभोग के दुःखद परिणाम को जानकर उससे छूटने एवं उस पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न करने के साथ उदारता, करुणा, आत्मीयता आदि का व्यवहार मनुष्य गति का सूचक है। दिव्य सात्त्विक प्रकृति के सुखभोग में डूबे रहना, अपने विकास के लिए उद्यत न होना देवगति का सूचक है। प्रकारान्तर से कहें तो अप्राप्त अनेक वस्तुओं की कामना करने वाला घोर अभावग्रस्त जीव नरकगामी, प्राप्त वस्तुओं के भोगों की दासता में आबद्ध रहने वाला तिर्यंचगामी, प्राप्त वस्तुओं का परोपकार या सेवा में सदुपयोग करने वाला देवगामी एवं प्राप्त विषय-भोगों का त्याग करने वाला जीव मुक्तिगामी होता है। जन्म से इन्द्रियों की प्राप्ति के आधार पर जाति के एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि पाँच भेद किए जाते हैं। एकेन्द्रिय जीव में मात्र स्पर्शनेन्द्रिय पायी जाती है। जब उसकी चेतना का विकास होता है तो वह द्वीन्द्रिय एवं फिर क्रमशः चेतना का विकास होने पर त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय बनता है। स्पर्शन का ही विकास रसना, घ्राण, चक्षु एवं श्रोत्र में होता है। ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जीव में ज्ञान एवं दर्शन की शक्ति बढ़ती है। इससे वह स्थूलतर, स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मतर पदार्थों के संवेदन रूप से ग्रहण करने एवं उन्हें जानने की क्षमता प्राप्त करता है। उस क्षमता की अभिव्यक्ति पाँच इन्द्रियों के क्रमिक विकास से प्रकट होती है। नामकर्म की 93 प्रकृतियों में कुछ के लक्षण लोढ़ा सा. ने एकदम नये दिए हैं, उनका उल्लेख यहाँ अभिप्रेत हैं अगुरुलघु- शरीर में संतुलन रखने वाली थायराइड, एड्रीनल आदि अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को अगुरुलघु नामकर्म कह सकते हैं। निर्माण- शरीर में जब कहीं हड्डी टूट जाती है तो उसे पुनः जोड़ने, निर्माण करने का कार्य निर्माण प्रकृति करती है। उपघात- अपने ही अंग द्वारा अपने शरीर को हानि पहुँचाना । आहार करने से शरीर बनने पर उसमें विजातीय पदार्थ उत्पन्न होना उपघात नामकर्म है। पराघात- शरीर की प्रतिरक्षात्मक शक्ति पराघात नामकर्म है। LXXIV आमुख
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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