SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदय का परिणाम है अथवा अच्छा स्वास्थ्य सातावेदनीय कर्म के उदय का परिणाम है, किन्तु प्रस्तुत कृति में आदरणीय लोढ़ाजी उक्त मन्तव्य से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि घटनाएँ घटनाएँ हैं, वे सुख-दुःख रूप नही हैं। दूसरे, रोग या स्वास्थ्य भी कर्मजन्य नहीं है। रोग न तो असातावेदनीय का उदय है और न स्वस्थता सातावेदनीय का उदय है। घटनाओं या रोग आदि का संवेदन चेतना जिस रूप में करती है, उसका सम्बन्ध सातावेदनीय या असातावेदनीय से है। किसी के लिए वह सातावेदनीय का निमित्त बन जाती है तो दूसरे के लिए असातावेदनीय का निमित्त बन जाती है। रोग या घटनाएँ मात्र बाह्य निमित्त हैं, उनका दुःख रूप या सुखरूप संवेदन चेतनाश्रित है - अतः सातावेदनीय और असातावेदनीय संवेदन रूप चैतसिक अवस्था है, जो कर्मजन्य है। इस प्रकार लोढ़ाजी वेदनीय कर्म का अर्थ भी परम्परा से हटकर करते हैं, किन्तु वह आगमानुकूल और समीचीन है। इसमें वैमत्य नहीं है। मलेरिया एक रोग या घटना है, वह किसी कर्म के निमित्त से नहीं होता है, किन्तु हम उसका संवेदन जिस रूप में करते हैं वह हमारे पूर्व कर्म संस्कार का परिणाम है – एक उसका वेदन समभाव से करता है तो दूसरा आकुलता से। बस यही वेदनीयकर्म अपना कार्य करता है। जो उसका वेदन समभाव से करता है वह असातावेदनीय का संक्रमण सातावेदनीय में करके उसका वेदन करता है तो दूसरा आकुलता की दशा में उसका वेदन असातावेदनीय रूप में करता है। इस प्रकार प्रस्तुत कृति में बन्धतत्त्व से सम्बन्धित विविध विषयों पर नवीन चिन्तन उपलब्ध होता है। यहाँ उसे समेट पाना तो सम्भव नहीं था। लेखक की समीक्षक किन्तु यथार्थ दृष्टि से परिचय पाने के लिये मात्र कुछ तथ्यों का संकेत किया है, जिससे पाठकों में ग्रन्थ के समग्र अध्ययन की रुचि जाग्रत हो। आदरणीय लोढ़ाजी ने कर्मबंध और कर्मविपाक का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तित्व की दृष्टि से माना है, वे स्पष्टरूप से यह बताते हैं कि धन-सम्पत्ति की प्राप्ति या अप्राप्ति, रोग आदि की उत्पत्ति के बाह्य संयोग का बनना या नहीं बनना यह पूर्वबद्धकर्म के उदयाधीन नहीं है। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि कर्मबंध और उसका विपाक दोनो 'पर' या बाह्यार्थ से सम्बन्धित नहीं भूमिका LVII
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy