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________________ से जो प्रकृति (आदत) पड़ गई-बंध गई है, वह प्रकृति (आदत) वर्तमान में जो प्रवृत्ति की जा रही है उससे अभी जो प्रकृति बन रही है, उसका अनुसरण-अनुगमन करती है तथा इन नवीन बनने वाली आदतों के अनुरूप पुरानी आदतों में परिवर्तन होता है। उदाहरणार्थ- पहले किसी व्यक्ति की प्रवृत्ति-प्रकृति ईमानदारी की है तो उसकी प्रकृति (आदत) बेईमानी की प्रकृति (आदत) में बदल जाती है। इसके विपरीत किसी व्यक्ति में पहले बेईमानी की आदत पड़ी हुई है और वर्तमान में ईमानदारी की आदत का निर्माण हो रहा है तो पहले की बेईमानी की आदत ईमानदारी में बदल जाती है, यह सर्वविदित है। शरीर और इन्द्रिय भीतर से अशुचि के भण्डार हैं एवं नाशवान हैं। इस सत्य का ज्ञान किसी को है, परन्तु अब वह शरीर व इन्द्रिय सुख के भोग में प्रवृत्त हो, मोहित हो जाता है तो उसे शरीर व इन्द्रिय-सुख सुन्दर व स्थायी प्रतीत होने लगता है। इस प्रकार उसका पूर्व का सच्चा ज्ञान आच्छादित हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अज्ञानरूप हो जाता है अर्थात ज्ञान अज्ञान में रूपान्तरित, संक्रमित हो जाता है। आगे भी उसका मोह जैसे-जैसे घटता-बढ़ता जायेगा उसकी इस अज्ञान की प्रकृति में भी घट-बढ़ होती जायेगी, अपवर्तन- उद्वर्तन होता जायेगा और मिथ्यात्व रूप मोह का नाश हो जायेगा, जिससे अज्ञान का नाश हो जायेगा और ज्ञान प्रकट हो जायेगा। वही अज्ञान, ज्ञान में बदल जायेगा। इसी प्रकार क्षोभ (क्रोध) और क्षमा, मान और विनय, माया और सरलता, लोभ और निर्लोभता, हिंसा और दया, हर्ष और शोक, शोषण और पोषण, करुणा और क्रूरता, प्रेम और मोह, जड़ता और चिन्मयता, परस्पर में वर्तमान प्रकृतियों के अनुरूप संक्रमित-रूपान्तरित हो जाते हैं। किसी प्रकृति की स्थिति व अनुभाग का घटना (अपवर्तन) बढ़ना (उद्वर्तन) भी स्थिति, संक्रमण व अनुभाग संक्रमण के ही रूप है। ___ संक्रमण करण का उपर्युक्त सिद्धान्त स्पष्टतः इस सत्य को उद्घाटित करता है कि किसी ने पहले कितने ही अच्छे कर्म बांधे हों, यदि वह वर्तमान में दुष्प्रवृत्तियाँ कर बुरे (पाप) कर्म बांध रहा है, तो पहले के अच्छे (पुण्य) कर्म बुरे (पाप) कर्म में बदल जायेंगे, फिर उनका कोई अच्छा सुखद फल नहीं मिलने वाला है। इसके विपरीत किसी ने पहले दुष्कर्म (पाप) किए हैं, XXXV प्राक्कथन
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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