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________________ है। सातावेदनीय, उच्च गोत्र, आदेय आदि पुण्य प्रकृतियों का अनुत्कृष्ट अनुभाग आत्म-विकास की अपूर्णता का अर्थात् पाप प्रवृत्तियों की विद्यमानता का सूचक है। आत्मा का उत्कृष्ट पूर्ण विकास शरीर, इन्द्रिय, मन-बुद्धि आदि प्राप्त सामग्री व सामर्थ्य के सदुपयोग से ही संभव है। कोई भी परिस्थिति ऐसी नहीं है जिसका सदुपयोग करने पर वह साट ना में सहायक न हो। परिस्थिति का सदुपयोग स्वाध्याय, तत्त्वचर्चा, सत्चिंतन, सेवा आदि सद्प्रवृत्तियों में करना गुण है। परन्तु किसी भी गुण के बदले में कुछ चाहना भोग है। उस गुण का गर्व करना, उसमें अपनी गरिमा मानना व सम्मान चाहना अभिमान है। गुण का अभिमान और भोग दोष है। दोष कोई भी हो वह गुण का नाशक आत्म— विकास में बाधक एवं पुण्य के अनुभाग का घातक होता है। अतः वीतराग व मुक्ति पथ के साधक के लिये अभिमान आदि दोषों से रहित गुण ही उपादेय है। वीतराग के अतिरिक्त सभी जीवों में आंशिक गुण-दोष विद्यमान हैं। अर्थात् राग-द्वेष, विषय-कषाय आदि दोषयुक्त गुण सभी प्राणियों में हैं। दोष गुण का घातक है। अतः जितने अंशों में दोष है, उतने अंशों में ही गुणों में कमी है। दोषों के त्याग में गुण की उपलब्धि है। राग-द्वेष युक्त संयम-सद्प्रवृत्ति (शुभयोग) में राग-द्वेष आदि दोष या पाप ही त्याज्य है; संयम, सद्प्रवृत्ति, शुभ योग त्याज्य नहीं है। शुभ योग के अभाव में अशुभ योग नियम से होता है। अतः शुभ योग या पुण्य त्याज्य नहीं है। संक्षेप में कहें तो अघाती कर्मों से निर्मित सुखद परिस्थिति का सदुपयोग सेवा में है और दुःखद परिस्थिति का सदुपयोग त्याग में है। दुःखियों को देखकर करुणित होना और सज्जनों-गणियों को देखकर प्रमुदित होना श्रेष्ठ सेवा है। शरीर आदि प्राप्त वस्तुओं की ममता, अप्राप्त वस्तुओं की कामना एवं अभिमान रहित होना ही वास्तविक त्याग है। सद्प्रवृत्ति रूप सेवा करने और दुष्प्रवृत्ति का त्याग करने में ही प्रत्येक परिस्थिति का सदुपयोग है। परिस्थितियों के सदुपयोग से पाप का निरोध (संवर) और निर्जरा एवं पुण्य का आस्रव व अनुबंध होता है। पाप के निरोध व निर्जरा से आत्मा शुद्ध होती है जिससे सभी परिस्थितियों से अतीत निज स्वरूप का अनुभव होता है। परन्तु किसी भी परिस्थिति से सुख का भोग करना परिस्थितियों की पराधीनता या दासता में आबद्ध होना आत्म-विकास, सम्पन्नता और पुण्य-पाप 235
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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