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________________ 3. शरीर में रही हुई दो अस्थियों के ऊपर पट्टा होने को ऋषभ, ऊपर नीचे मर्कट बंध को नाराच और पट्टी पर वज्रमय कीलिका को वज्र कहा गया है। 1. जिस शरीर में दोनों अस्थियों पर दृढ़ कीले हों वैसे अस्थि बंध की रचना को वजऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। 2. जिस शरीर में वज्र की कीलिका को छोड़कर ऋषभ और मर्कट बंध हो उसे ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। जिस शरीर में वज्र और ऋषभ को छोड़कर केवल मर्कट बंध हो उसे नाराच संहनन कहते हैं। जिस शरीर में अस्थियों पर ऊपर नीचे बंधन न होकर केवल एक ओर मर्कट बंधन हो उसे अर्द्ध नाराच कहते हैं। जिस शरीर में कीलक युक्त अस्थि बंधन हो, उसे कीलक संहनन कहते हैं। 6. जिस शरीर में कीलक आदि कुछ भी न होकर मात्र अस्थियाँ हों ऐसे शिथिल शरीर बंधन को सेवात कहते हैं। इनमें आगे-आगे के संहनन में क्रमशः शारीरिक बल और अस्थि रचना की मजबूती में कमी मानी गई है। संस्थान नाम शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं। यह 6 प्रकार का है, यथा- 1. समचतुरस्र 2. न्यग्रोध परिमण्डल 3. सादि 4. वामन 5. कुब्जक और 6. हुंडक। 1. पालथी आसन से बैठे हुए को दाहिने कंधे से बांये घुटने तक और बांये कंधे से दाहिने घुटने तक दोनों घुटनों और स्कन्धों का अन्तर मापने में समान हो अथवा जिस शरीर में ऊपर और नीचे के अवयव लक्षण-प्रमाण सहित हों, उसे समचतुरस्र संस्थान कहते हैं। जो शरीर वट वृक्ष की तरह ऊपर विस्तार युक्त और नीचे से संकुचित हो, उसे न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान कहते हैं। जिस शरीर में नाभि से नीचे के अंग प्रमाणोपेत हों और ऊपर के अंग प्रमाण से हीन हों, उसे सादि संस्थान कहते हैं। जिस शरीर का आकार वामन रूप (बौना) हो, उसे वामन संस्थान कहते हैं। 4. नाम कर्म 165
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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