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________________ ठिई, इठे लावण्णे, इट्ठा जयोकित्ती, इठे उढाण-कम्मबल-वीरिय-पुरिसक्कारपरक्कमे इट्ठस्सरया, कंतस्यस्या, पियस्यस्यामणुण्णस्यस्या जंवेएइ..पोग्गल-परिणाम. .अणिहा सद्दा जाव अकन्तस्यस्या।।-पन्नवणा पद 23,उद्देशक 1 हे गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके शुभ नाम कर्म का चौदह प्रकार का अनुभाव कहा गया है- 1. इष्ट शब्द 2. इष्ट रूप 3.इष्ट गंध 4. इष्ट रस 5. इष्ट स्पर्श 6. इष्ट गति 7. इष्ट स्थिति 8. इष्ट लावण्य 9. इष्ट यशकीर्ति 10. इष्ट उत्थान कर्म, बल वीर्य, पुरुषाकार पराक्रम 11. इष्ट स्वर 12. कान्त स्वर 13. प्रिय स्वर 14. मनोज्ञ स्वर। यह शुभ नाम कर्म है और इसके विपरीत अनिष्ट शब्द, यावत् अकान्त स्वर ये अशुभ नामकर्म के 14 अनुभाव हैं। नाम कर्म में इष्ट (अभिलषित) शब्दादि अपने स्वयं के ही समझना चाहिए। इस प्रकार नाम कर्म मन, वचन, शरीर व इन्द्रिय की सक्रियता से संबंधित है। यहाँ पर इष्ट का अर्थ अपने शरीर, इन्द्रिय, वचन और मन के लिए उचित व हितकर है और अनिष्ट का अर्थ शरीर, वचन, मन व इन्द्रिय के लिये अनुचित व अहितकर है। नाम कर्म के उदय का सम्बन्ध अपने शरीर, इन्द्रिय, मन आदि से भिन्न अन्य बाहरी पदार्थों व क्रिया से नहीं है, जैसाकि कहा है अंगोवंगसरीरिन्दिय-मणस्यासजोगणिप्पत्ती। जस्योदएण सिद्धो तण्णाम रखएणं असरीरी।। -धवला पुस्तक 7, गाथा 9, पृ. 15 जिस नाम कर्म के उदय से अंगोपांग, शरीर, इन्द्रिय, मन और उच्छवास के योग्य निष्पत्ति होती है, उसी नाम कर्म के क्षय से सिद्ध अशरीरी होते हैं। आशय यह है कि नाम कर्म का सम्बन्ध शरीर, इन्द्रिय, मन, वचन तथा इनकी सक्रियता से है। इनमें स्थित आत्मप्रदेशों की विद्यमानता से है। आत्म-प्रदेश निकलते ही मृत शरीर, इन्द्रिय आदि में नाम कर्म या अन्य किसी भी कर्म का उदय संभव नहीं है- तब शरीर से बाहर के पदार्थों में कर्मोदय कैसे हो सकता है? नहीं हो सकता। वण्णवज्झाणि य से कम्माइं बद्धाइ पुट्ठाई निठताई कडाई पट्टवियाइंअभिनिविट्ठाइंअभिसमन्नागयाइंउदिण्णाइंनोउवयत्ताई 154 नाम कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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