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________________ भोगों की दासता है । संयम को शान्ति, स्वाधीनता, चिन्मयता आदि के लिए आवश्यक मानकर भी संयम धारण न करना प्रत्याख्यानावरण है। संज्वलन कषाय एक प्रकार से भुक्त - अभुक्त भोगों के संस्कारों की स्फुरणा है जो व्यक्ति में आकुलता की आग जलती है । वर्तमान में कुछ लोगों में ऐसी धारणा है कि अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानवरण तथा संज्वलन एक ही कषाय की तरतम या न्यूनाधिक अवस्थाएँ हैं अर्थात् परिमाण या क्वान्टिटी में न्यूनाधि ाकता है, परन्तु यह मान्यता उचित नहीं लगती है। कारण कि अधिक तथा न्यून; अथवा तीव्र तथा मंद कषाय परस्पर विरोधी हैं, अतः इनका उदय एक साथ संभव नहीं है। एक ही कषाय एक ही समय अधिक भी हो, न्यून भी हो, तीव्र भी हो और मंद भी हो, यह संभव नहीं है। जबकि आगम और कर्म-सिद्धान्त में अनन्तानुबंधी क्रोध आदि कषायों के उदय के साथ नियम से संज्वलन क्रोध सहित चारों कषायों का उदय माना है। इससे स्पष्ट है कि ये परिमाण नहीं, अपितु परिणाम (भाव) या क्वालिटी हैं। प्रत्येक कषाय में अनुभाग (रस) की तरतमता द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक, चतुःस्थानिक तथा इनके अनन्त भेद के रूप में कही गई है। अतः अनन्तानुबंधी क्रोध कषाय में क्रोध उग्र हो और संज्वलन क्रोध में क्रोध नगण्यवत् हो, ऐसा नहीं है । कारण कि प्रथम तो दोनों का उदय एक साथ है। दूसरा, मिथ्यात्वी जीव के एक समय मात्र भी ऐसा नहीं होता कि अनन्तानुबंधी कषाय का उदय न हो। तीसरा, नवग्रैवेयक देवों में मिथ्यात्वी देव के शुक्ललेश्या होने पर भी अर्थात् पूर्ण शांत भाव होने पर भी अनन्तानुबंधी कषाय का उदय निरन्तर रहता है। सब एकेन्द्रिय जीव अनन्तानुबंधी कषाय के उदय वाले हैं। उन जीवों के एक सागर की स्थिति वाला तथा द्विस्थानिक अनुभाग कर्म बंधता है, जो आठवें गुणस्थानवर्ती शुक्ल लेश्यावाले साधु से भी कम है । लेश्या शुभाशुभ भावों की तरतमता की द्योतक है। इससे यह भी फलित होता है कि अनन्तानुबंधी आदि कषाय योगों की शुभता - अशुभता पर निर्भर नहीं हैं। मन, वचन, काया की प्रवृत्ति से संबंधित नहीं हैं। इनका सम्बन्ध राग-द्वेष रूप भावों की प्रधानता से है, विषय भोगों से है । क्रोध, मान, माया, लोभ ये राग-द्वेष के भोग के प्रवृत्तिमान रूप हैं तथा मोहनीय कर्म 119
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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