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________________ (9-10) अमुक्त को मुक्त और मुक्त को अमुक्त श्रद्धना जिसका जीवन तथा सुख, शरीर, इन्द्रिय, वस्तु, परिस्थिति, संपत्ति, सत्ता, सत्कार, परिवार, संसार आदि 'पर' से जुड़ा हुआ है, बंधा हुआ है, 'पर' पर आधारित है, जो पराधीन है, पराश्रित है, भोगों का दास है वह अमुक्त है, दुःख व दोषों से ग्रस्त है। उस दुःख व दोष से ग्रस्त को, अमुक्त को स्वाधीन व सुखी मानना, अमुक्त को मुक्त मानने रूप मिथ्यात्व है। जो विषय-कषाय, राग-द्वेष-मोह आदि समस्त विकारों से या दोषों से मुक्त है, निर्दोष है, निर्विकार है, स्वाधीन है, इन्द्रियातीत, देहातीत, लोकातीत, भयातीत है, उसके जीवन को सुख से वंचित, दुःखी, पराधीन, अकर्मण्य, नीरस, निस्सार या व्यर्थ मानना मुक्त को अमुक्त मानने रूप मिथ्यात्व है। ये दोनों मिथ्यात्व सिद्धत्व से संबंधित हैं। सारांश यह है कि मिथ्यात्व का सम्बन्ध अपने 1. स्वरूप 2. साधकत्व 3. स्वभाव 4. साधना और 5. साध्य-सिद्धि आदि के विषय में मिथ्या मान्यताओं से है, यथा- 1. अपने को देह रूप मानना, जीव को अजीव मानने रूप मिथ्या मान्यता है। 2. धन-सम्पत्ति आदि जड़ पदार्थों की उपलब्धि को जीवन मानना, अजीव को जीव मानने रूप मिथ्यात्व है। 3. विषय-भोगों के त्यागी को दुःखी मानना, साधक को असाधक मानने रूप मिथ्यात्व है। 4. विषय-विकार से ग्रस्त को सुखी मानना, असाधु को साधु मानने रूप मिथ्यात्व है। 5. त्याग को अस्वाभाविक मानना, धर्म को अधर्म मानने रूप मिथ्यात्व है। 6. विषय-विकार या भोग को स्वाभाविक नैसर्गिक मानना, अधर्म को धर्म मानने रूप मिथ्यात्व है। 7. राग या कामना पूर्ति में सुख मानना, दुःख में सुख मानना साधना रूप मिथ्यात्व है। 8. राग के त्याग में दुःख मानना, सुख में दुःख मानने रूप मिथ्यात्व है। 9. भूमि, भवन, धन-सम्पत्ति आदि पर पदार्थों के आश्रय (पराधीनता) या प्राप्ति से अपने को स्वाधीन मानना, अमुक्त को मुक्त मानने रूप मिथ्यात्व है। 10. देहातीत, लोकातीत, पूर्ण स्वाधीन अवस्था को सुखहीन या दुःख रूप अवस्था मानना, मुक्त को अमुक्त मानने रूप मिथ्यात्व है। इन सब मिथ्या मान्यताओं के आत्यन्तिक क्षय या नाश से अर्थात् सम्यग्दर्शन से ही वीतरागता की ओर चरण बढ़ते हैं। अतः जब तक इन मिथ्या मान्यताओं का उदय रहता है, तब तक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र 116 मोहनीय कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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