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________________ का त्यों बना रहना चाहिये, परन्तु सबके ज्यों के त्यों विद्यमान रहते हुए भी सुख का अंत हो जाता है। ताजमहल के पहरेदार को तो ताजमहल देखने में सुख लगता ही नहीं है। इससे यह परिणाम निकलता है कि ताजमहल सुख नहीं देता, यदि ताजमहल देखने से सुख मिलता, तो उसे देखने वाले सब व्यक्तियों को, सब काल में, सदा एक-सा सुख मिलता। यही तथ्य खाने-पीने-सुनने आदि पर भी लागू होता है। वास्तविकता यह है कि कोई भी बाह्य पदार्थ वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि सुख-दुःख नहीं देते, इन्हें सुख-दुःख का कारण मानना या समझना भूल है, भ्रान्ति है, अज्ञान है। अपने सुख-दुःख का कारण बाहरी वस्तु, व्यक्ति, घटना आदि को मानना बहिर्दृष्टि है, यही अज्ञान है, क्योंकि बाहरी वस्तुएँ या घटनाएँ वास्तव में सुख-दुःख की कारण नहीं हैं। यदि ये सुख-दुःख का कारण होतीं, तो सबको एक समान सुख-दुःख देतीं तथा सुखद वस्तु सदा सुख देती और दुःखद वस्तु सदा दुःख देती। एक ही वस्तु या घटना जो किसी एक व्यक्ति के लिए सुखद होती है वही किसी दूसरे व्यक्ति के लिए दुःखद होती है। इसी प्रकार जो वस्तु या घटना किसी व्यक्ति के लिए अभी सुखद है वही कालान्तर में उसके लिए दुःखद हो जाती है। यदि बाहरी वस्तु, घटना आदि सुख-दुःख का कारण होती, तो सबको, सब काल में, सब क्षेत्र में, सब अवस्थाओं में एक-सा सुख या दुःख देती। इससे यह फलित होता है कि सुख-दुःख का कारण वस्तु, व्यक्ति, घटनाएँ आदि बाह्य सामग्री नहीं है। इस सत्य ज्ञान को स्वीकार न करना और बाह्य सामग्री को सुख-दुःख का कारण मानना अज्ञान है। वस्तुतः सुख-दुःख का कारण वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, घटना आदि बाहरी सामग्री न होकर प्राणी के अन्तरंग में होने वाली राग-द्वेषात्मक प्रतिक्रिया है। यदि व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि की कोई प्रतिक्रिया न करे, उनके प्रति तटस्थ रहे, केवल ज्ञाता-द्रष्टा रहे, तो उसे सुख- दुःख नहीं होता है। इससे यह फलित होता है कि सुख-दुःख का कर्त्ता -अकर्ता अन्य कोई न होकर प्राणी स्वयं ही है। इस तथ्य को स्वीकार करना ही ज्ञान है। जैसा कि कहा है- अप्पा कत्ता-विकत्ता य दुहाण य सुहाण य । (उत्तरा. अध्ययन 20 गाथा 37) अर्थात् आत्मा स्वयं ही अपने सुख-दुःख का कर्ता-अकर्ता है। अपने सुख-दुःख का कारण अपने अन्तर में देखने ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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