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________________ कहा है । भोग युक्त योग से ही कषाय पैदा होता है। इस प्रकार योग और कषाय ही कर्म-बंध के कारण हैं। तात्पर्य यह है कि कर्म-बंध के कारण राग - द्वेष तथा योग - कषाय हैं और इनका कारण विषय भोग है। यह सबका अनुभव है कि विषय-भोग की कामना उत्पन्न होते ही चित्त अशान्त - क्षुब्ध होता है और विषय-भोगों की पूर्ति पर - पदार्थों पर आश्रित है । अतः विषय - सुख के भोगी को पराधीन होना ही पड़ता है। विषय- सुख पराधीन होने से सभी विषय भोगों की पूर्ति हो जाय, यह प्राणी के वश की बात नहीं है और आज तक किसी के भी सभी विषय - भोगों की इच्छा की पूर्ति नहीं हुई है, अतः जिस इच्छा की पूर्ति नहीं होती अथवा जब तक पूर्ति नहीं होती, उस इच्छा की अपूर्ति रूप अभाव का दुःख भोगना ही पड़ता है। तात्पर्य यह है कि विषय-भोग के सुख के साथ अशान्ति, अभाव, पराधीनता, नश्वरता आदि दुःख लगे हुए हैं, जो किसी को इष्ट नहीं हैं । यह ज्ञान प्राणी मात्र को है । इसी प्रकार किसी व्यक्ति को कोई अन्य मारे-पीटे, कष्ट दे, उसके साथ झूठ बोले, चोरी करे, निंदा करे, हानि पहुँचाये, तो उस व्यक्ति को अपने साथ की गई मार-पीट, कष्ट देना, झूठ बोलना, चोरी करना आदि सारे व्यवहार व कार्य बुरे लगते हैं । यहाँ हर व्यक्ति अपने निज ज्ञान से इन कार्यों को बुरा एवं अकर्त्तव्य मानता है । अर्थात् अपने प्रति अकर्त्तव्य का व्यवहार करना, अपने अधिकारों का हनन होना किसी को भी इष्ट नहीं है। सभी इसे अपने निजज्ञान से बुरा मानते हैं । ज्ञानावरणीय कर्म का सम्बन्ध अपने स्वाभाविक निजज्ञान के, श्रुतज्ञान के अनादर से है, अर्थात् विषय-भोगों का सेवन करना, अकर्त्तव्य है । अपने अधिकारों का हनन करने वाले को, अपने को दुःख पहुँचाने वाले को व्यक्ति बुरा मानता है। अतः जिस कार्य को वह अपने लिए बुरा मानता है, अहितकर मानता है, उन कार्यों को करना व वैसा व्यवहार दूसरों के प्रति करना, दूसरों के अधिकारों का हनन करना, उनके प्रति अकर्त्तव्य का व्यवहार करना, निज ज्ञान का अनादर करना है, ज्ञान का प्रभाव नहीं होना है । यही ज्ञान पर आवरण आना है, ज्ञानावरण है, जो छः कारणों से होता है, यथा 1. प्रत्यनीकता - ज्ञान के विपरीत आचरण करना । विषयभोग के साथ अशान्ति, अभाव, पराधीनता, चिन्ता, वियोग का भय, नश्वरता आदि ज्ञानावरण कर्म 37
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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