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________________ शरीर के स्तर पर ही होता है, अतः यह रूपी पदार्थों को ही विषय करता है। इस दृष्टि से इसे अवधिज्ञान कहा जा सकता है। जब साधक इस ज्ञान से अंतर्मुखी होते हुए संवेदनाओं को देखते, अनुभव करते व जानते हुए अधिक से अधिक अन्तर को पार करते हुए अंतिम छोर तक पहुँच जाता है और अपने समस्त आत्म-प्रदेशों से विषयभूत अर्थ को ग्रहण करता है, तब सर्वावधि व परमावधि ज्ञान हो जाता है। (जिससे देह में रहते हुए देहातीत-निर्विकार-वीतराग, कैवल्य अवस्था का अनुभव हो जाता है।) इस ज्ञान पर आवरण आना, इसका प्रकट न होना अवधि ज्ञानावरण है। षड्खंडागम खंड 1 भाग 1 सूत्र 1 – सूत्र का अध्ययन करने वालों की असंख्यात गुणित श्रेणी रूप से प्रति समय कर्म निर्जरा होती है, यह बात अवधिज्ञानी और मनःपर्यय ज्ञानियों को प्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध (अनुभव) होती है। मनःपर्याय ज्ञान एवं मनःपर्यायज्ञानावरण इन्द्रिय और मन के माध्यम के बिना सीधे आत्मा से दूसरे के एवं स्वयं के मनोगत भावों (पर्यायों) को जानना मनः पर्ययज्ञान है। इसका साधना परक अर्थ है: किसी भी पदार्थ या विषय का मन से चिंतन करने से चिन्तनीय पदार्थों की भिन्नता के अनुसार मन भिन्न-भिन्न वृत्तियों व आकृतियों को धारण करता है। ये मानसिक वृत्तियाँ व आकृतियाँ ही मन की पर्यायें हैं। चिंतन के द्वारा मन की जो अवग्रह, ईहा आदि रूप क्रियाएँ की जाती हैं, वह मतिज्ञान है और जो मन की पर्यायें चिंतन न करने पर भी स्वतः प्रकट होती हैं, उनको मन से असंग रहते हुए जानना मनःपर्याय ज्ञान है। इस ज्ञान से मन की पर्यायें जानी जाती हैं, परन्तु चिंतनीय पदार्थ नहीं जाना जा सकता । मानसिक पर्यायें विकल्प युक्त होती हैं, अतः मनःपर्याय-दर्शन नहीं होता है, कारण कि दर्शन निर्विकल्प होता है। जब ध्यान साधक (योगी) का चित्त शान्त व निर्मल हो जाता है तब अपने सान्निध्य या सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति के चित्त में उठने वाली तरंगों के प्रवाह का अनुभव कर सकता है। उन तरंगों के, सवदनाओं के अनुभव से वह यह जान सकता है कि जिस व्यक्ति की तरंगें आ रही हैं उस व्यक्ति की चित्त-दशा कैसी है, अर्थात् उसका चित्त कितना विकार ग्रस्त या विशुद्घ है, कितना खिन्न, तनाव युक्त अथवा कितना प्रसन्न, प्रमुदित है। ज्ञानावरण कर्म 24
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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