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________________ तृतीयो विलासः [ ४३७ ] अथ वीथी सूच्यप्रधानशृङ्गारा मुखनिर्वहणान्विता । एक योज्या द्वियोज्या वा कैशिकीवृत्तिनिर्भरा ।। २७० ।। वीथ्यङ्गसहितैकाङ्का वीथीति कथिता बुधैः । अस्यां प्रायेण लास्याङ्गदशकं योजयेन्न वा ।। २७१ ।। सामान्या परकीया वा नायिकात्रानुरागिणी । वीथ्यङ्गप्रायवस्तुत्वान्नोचिता कुलपालिका ।। २७२ ।। लक्ष्यमस्यास्तु विज्ञेयं माधवीवीथिकादिकम् । (७) वीथी - वीथी शृङ्गार रस की प्रधानता वाली, मुख और निर्वहण सन्धि से समन्वित, एक या दो पात्रों द्वारा प्रयोज्य तथा कैशिकी वृत्ति पर आश्रित होती है। यह वीथी के अङ्गों (जिनका निरूपण प्रस्तावना के प्रसङ्ग में किया जा चुका है) के सहित एक अङ्क वाली होती है। इसमें प्रायः लास्य के दसों अङ्गों (जिसका विवेचन भाण के निरूपण के प्रसङ्ग में किया जा चुका है) को संयोजित करना चाहिए। यह संयोजन नहीं भी किया जा सकता है। इसमें अनुरागिणी सामान्या (वेश्या) अथवा परकीया नायिका होती है। वीथ्यङ्गों की प्रधानता होने के कारण कुलपालिका (कुलजा) नायिका नहीं हो सकती है। माधवी वीथिका इत्यादि को इसका उदाहरण समझना चाहिए ।। २७०-२७३पू.।। अथ प्रहसनम् - वस्तुसन्ध्यङ्कलास्याङ्गवृत्तयो यत्र भाणवत् ।। २७३ ।। रसो हास्यप्रधानः स्यादेतत् प्रहसनं स्मृतम् । विशेषेण दशाङ्गानि कल्पयेदत्र तानि तु ।। २७४ ।। अवलगितमवस्कन्दो व्यवहारो विप्रलम्भमुपपत्तिः । भयमनृतं विभ्रान्तिर्गद्गदवाक् च प्रलापश्च ।। २७५ ।। (८) प्रहसन - प्रहसन हास्यप्रधान रस वाला तथा भाण के समान कथावस्तु, सन्ध्यङ्क, लास्याङ्ग तथा वृत्तियों से युक्त होता है। विशेष रूप से इसमें दक्ष अङ्गों की कल्पना करनी चाहिए। वे दश अङ्ग ये हैं- (१) अवगलित ( २ ) अवस्कन्द (३) व्यवहार (४) विप्रलम्भ (५) उपपत्ति (६) भय (७) अनृत (८) विभ्रान्ति (९) गद्गद्वाक् और (१०) प्रलाप ।।२७३३. - २७५॥ तत्रावलगितम् - पूर्वमात्मगृहीतस्य समाचारस्यं मोहतः ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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