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________________ [ ४०४ ] रसार्णवसुधाकरः नर्तक- अनेक प्रकार के अभिनय करने वाले नर्तक कहलाते हैं । १५६ ॥ (तदेवम् ) - विस्तरादुत सङ्क्षेपात् प्रयुञ्जीत प्ररोचनाम् । प्ररोचना का प्रयोग- नाटक में विस्तार से अथवा संक्षेप से प्ररोचना का प्रयोग करना चाहिए ।। १५७पू. ।। संक्षिप्ता प्ररोचना यथा रत्नावाल्यां (१/५) श्रीहर्षो निपुणः कविः परिषदप्येषा गुणग्राहिणी लोके हारि च वत्सराजचरितं नाट्ये च दक्षा वयम् । वस्त्वेकैकमपीह वाञ्छितफलप्राप्तेः पदं किं पुनमद्भाग्योपचयादयं समुदितः सर्वो गुणानां गणः ।।614।। अत्र कथानायककविसभ्यनटानां चतुर्णां संक्षेपेण वर्णनादियं संक्षिप्त प्ररोचना । संक्षिप्त प्ररोचना जैसे रत्नावली के १/५ में श्रीहर्ष निपुण कवि हैं, यह परिषद् (दर्शक, सभा) भी गुणों को ग्रहण करने वाली है, वत्सराज उदयन का चरित्र अतीव हृदयहारी है तथा हम सब नाट्य- कर्म में दक्ष हैं। एक-एक गुण का होना भी वाञ्छितफल (सफलता) को दिखलाने वाला होता है तो फिर यहाँ हमारे सौभाग्य से समस्त गुण एकत्र प्राप्त हो रहे हैं । 1614 ।। यहाँ कथानक, कवि, सभ्य और नट चारों का संक्षेप में वर्णन होने के कारण संक्षिप्त प्ररोचना है। विस्तरात्तु बालरामायणादिषु द्रष्टव्या । विस्तार वाली प्ररोचना को बालरामायण इत्यादि में देख लेना चाहिए। एवं प्ररोचयन् सभ्यान् सूत्रीकुर्यादथामुखम् ।। १५७।। इस प्रकार सभ्यों को प्ररोचित (आगे आने वाली बात का रोचक वर्णन) करते हुए सूत्रधार को आमुख प्रस्तावना करना चाहिए ।। १५७उ. ।। (अथामुखम्) - सूत्रधारो नटीं ब्रूते स्वकार्यं प्रति युक्तितः । प्रस्तुताक्षेपचित्रोक्त्या यत्तदामुखमीरितम् ।। १५८ । । आमुख- प्रस्तुत विषय पर आक्षिप्त (सूचना देने वाली ) विचित्र उक्तियों द्वारा ( युक्ति- पूर्वक) सूत्रधार नटीं से अपने कार्य के प्रति (नाटक को प्रारम्भ करा देने को ) कहता है, वह आमुख है ।। १५८॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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