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________________ तृतीयो विलासः [३९७] वन्देमहि च तां वाणीममृतामात्मनः कलाम् ।।603 ।। नमस्कारात्मकनान्दी जैसे उत्तररामचरित (१/१ में पहले के वाल्मीकि आदि कवियों को नमस्कार कर 'ब्रह्मा की सनातन अंशभूत देवी वाणी को हम लोग पावें' ऐसी प्रार्थना करते हैं।।603 ।। वस्तुनिर्देशवती नान्दी यथा प्रबोधचन्द्रोदये (१.१) अन्तर्नाडीनियमितमरुल्लङ्घितब्रह्मरन्ध्र स्वान्ते शान्तिप्रणयिनि समुन्मीलदानन्दसान्द्रम् । प्रत्यग्ज्योतिर्जयति यमिनः स्पष्टललाटनेत्र व्याजव्यक्तीकृतमिव जगद्व्यापि चन्द्रार्धमौलेः ।।604।। वस्तुनिर्देशात्मक नान्दी जैसे प्रबोधचन्द्रोदय(१.१) में सिर पर अर्ध चन्द्र धारण करने वाले योगस्थ (शिव) की सुषुम्ना- नाड़ी में नियन्त्रित वायु के द्वारा अतिक्रान्त ब्रह्मरन्ध्र (मूर्धा में एक प्रकार का विवर जहाँ से जीव इस शरीर को छोड़ कर निकल जाता है) वाली अपने भीतर शान्ति से प्रणय करने वाली (शान्ति से परिपूर्ण) प्रकाशमान आनन्द से सिक्त ललाट (नेत्र के) बहाने (रूप से) स्पष्टरूप मानो व्यक्त की जाती हुई तथा विश्व-व्याप्य अन्तर्योति सफल (विजयी) होती है।।604।। अष्टपदान्विता यथा महावीरचरिते (१.१) अथ स्वस्थाय देवाय नित्याय हतपाप्मने । त्यक्तक्रमविभागाय चैतन्यज्योतिषे नमः ।।605।। अष्ट (अक्षर वाले) पद वाली नान्दी जैसे महावीरचरित में स्वर में अवस्थित, सनातन, पापविनाशक, उत्पत्त्यादि-क्रमशून्य, ज्ञानस्वरूप तेज परब्रह्म को नमस्कार है।।605 ।। दशपदान्विता यथा अभिरामराघवे- 'क्रियासुः कल्याणं- इत्यादि। दश (अक्षर वाले) पदों वाली नान्दी जैसे अभिरामराघव में- क्रियासुः कल्याणं इत्यादि। द्वादशपदान्विता यथानघराघवे (१.१) निष्पत्यूहमुपास्महे भगवतः कौमोदकीलक्ष्मणः कोकप्रीतिचकोरपारणपटुज्योतिष्मती लोचने । याभ्यामविबोधमुग्धमधुरश्रीरर्धनिद्रायितो नाभीपल्वलपुण्डरीकमुकुलः कम्बोः सपत्नीकृतः ।।606।। अत्रैव मङ्गलार्थपदप्रायत्वं चन्द्रनामाहितत्वं च द्रष्टव्यम् ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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