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________________ तृतीयो विलासः दाज्ञातं धानि वारां रघुपतिविशिखाः प्रज्ज्वलन्तः पतन्ति इत्यन्तेन समुद्रक्षोभलिङ्गानुमितरामोत्साहार्थकथनादनुमानम् । जैसे- वहीं (बालरामायण के ७/२१ पद्य से पूर्व ) - [ ३३३ ] 11(7/30)53411 "प्रतिहारी- (चारों ओर देखकर ) यह समुद्र कुछ दूसरे प्रकार का दिखायी पड़ रहा है। बन्दी - (आश्चर्य सहित सामने देख कर ) चितकबरे जलमानुष की जोड़ी वाले, अत्यन्त कदर्थित शङ्खिनी समूह वाले" यहाँ से लेकर प्रतिहारी- (सोचते हुए) क्या यह शङ्कर की तीसरी आँख से प्रलयकालिक अग्नि अपनी लपटों को फैलाती हुई निकली है, अथवा क्या यह समुद्र के जलों को छेद कर सभी ओर से और्व अग्नि ऊपर निकल आयी है, अथवा क्या यह भयङ्कर कालाग्नि पातालमूल से संसार को शिथिल कर रहा है- हाँ समझ गया, समुद्र में राम के जलते हुए बाण गिर रहे हैं। " ( 7/30) 11535 11 अथ तोटकम् यहाँ तक समुद्र के क्षोभ - रूपी चिह्न से अनुमान लगाये गये राम के उत्साह का कथन होने से अनुमान है। ससंरम्भं तु वचनं सङ्गिरन्ते हि तोटकम् ( 8 ) तोटक - आरम्भ - पूर्वक कथन तोटक कहलाता है ।।५५पू.।। यथा तत्रैव (बालरामायणे ) " हनूमान् - यथादिशति स्वामी । ( सर्वतोऽवलोक्य)दृप्यद्विक्रमकेलयः कपिभटाः शृण्वन्तु सुग्रीवजाम् आज्ञां मौलिनिवेशिताञ्जलिपुटाः सेतोरिह व्यूहने । दोर्दण्डद्वयताडनश्लथधराबन्धोद्धृतान् भूधरान् आनेतुं सकलाः प्रयातककुभः किं नाम वो दुष्करम् ।।(7/46)535।। इत्युपक्रम्य अङ्कपरिसमाप्तेः कपिराक्षसादिसंस्म्भकथनात् तोटकम् । जैसे वहीं (बालरामायण के सप्तम अङ्क में ) - " हनूमान्- आप स्वामी की जैसी आज्ञा । (चारों ओर देखकर ) - हे अहङ्कार युक्त पराक्रम क्रीडा वाले वानरों ! शिर पर हाथ जोड़ कर सेतुबन्धन के कार्य में सुग्रीव की आज्ञा सुनो- हाथों के प्रहार से जिनके पृथ्वी के बन्धन टूट गये हैं। ऐसे पर्वतों को लाने के लिए आप लोग दिशाओं में जावें, आप के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है।" (7.46) 11535।। यहाँ से अङ्क समाप्त होने तक वानरों- राक्षसों इत्यादि के समारम्भ का कथन होने
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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