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________________ तृतीयो विलासः जैसे वही (बालरामायण के असमपराक्रमनामक सप्तम अङ्क में ) - "विभीषण- हे मित्र सुग्रीव ! राम का यह कार्य शिव से भी बढ़ कर है, जो इन्होंने जिस सागर में जलपान से पीड़ित बल वाली प्रलय कालीन अग्नियाँ शमित हो गयीं हैं, और जिस सागर की गोंद में बडवानल तुषानल के समान मृदु हो गया है उस समुद्र को भी राम के बाणों ने, जिनमें अग्नि के सङ्क्रमण से ज्योति की किरणें निकल रहीं हैं, दावानल का स्वरूप दे दिया है । (7.32) 11532।। यहाँ से लेकर "समुद्र- तो बालभूत नारायण राम के पास चलें। पूर्णिमा के चन्द्रमण्डल के बिना चन्द्रकान्त मणि में आनन्द द्रव नहीं होता।" (७/३६ पद्य से पूर्व ) यहाँ तक समुद्र को क्षुभित करने वाले रामचन्द्र के उत्साह के उत्कर्ष का कथन होने के कारण उदाहरण है। अथ क्रम: [ ३३१ ] भावज्ञानं क्रमो यद्वा चिन्त्यमानार्थसङ्गतिः ।। ५३ ।। ( 5 ) क्रम - भाव का ज्ञान अथवा चिन्त्यमान अर्थ ( कार्य ) का संक्षेप करना क्रम कहलाता है ।। ५३3. ।। यथा तत्रैव (बालरामायणे) षष्ठाङ्के (६/४ पद्यादनन्तरम्) - " माल्यवान् - (स्मृतिनाटितकेन) न जाने किं हि वृत्तं कैकेयीदशरथयोः (उपसर्पितकेन)” मायामय:- जयतु आर्यः ! शूर्पणखा- जेदु जेदु कणिठ्ठमादामहो (जयतुजयतु कनिष्ठमातामहः) । "माल्यवान् - अथ किं वृत्तं तत्र ? मायामयः - यथादिष्टमार्येण " इत्युपक्रम्य माल्यवान् - (सहर्षम् ) तर्हि विस्तरतः कथ्यताम्" इत्यन्तेन माल्यवच्चिन्तासमकालमेव शूर्पणखामायामययोरुपगमनाद्वा माल्यवतो विलम्बासहाभिप्राय-परिज्ञानवता मायामयेन निष्पन्नस्य कार्यस्य संक्षेपकथनाद् वा क्रमः । जैसे वहीं (बालरामायण के ) षष्ठ अङ्क (६/४ पद्य से बाद) में " माल्यवान् - (स्मृति का अभिनय करके) न जाने दशरथ और कैकेयी का क्या हुआ। (पास आकर) मायामय- आर्य की जय होवे। शूर्पणखा - छोटे नाना की जय हो । माल्यवान् - वहाँ क्या हुआ ? 'मायामय- जैसा आपने कहा था?" यहाँ से लेकर "माल्यवान् - ( प्रसन्नतापूर्वक) तो विस्तार से कहो ” तक माल्यवान् सोचने के साथ शूर्पणखा तथा मायामय के पहुँचने से अथवा माल्यवान् का विलम्ब न सहने के अभिप्राय को जान लेने वाले मायामय के द्वारा निष्पन्न कार्य का संक्षेप में कथन होने से क्रम है। अथ सङ्ग्रहः सङ्ग्रहः सामदानार्थसंयोगः परिकीर्त्तितः ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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