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________________ [ २६२ ] रसार्णवसुधाकरः जैसे (कन्दर्पसम्भव में ) - (लक्ष्मी कहती है- हे विष्णु) आप के द्वारा मेरे अङ्क पर यह क्या कर दिया गया। (विष्णु कहते हैं -) हे मुग्धे (लक्ष्मी) तुम्हारे द्वारा मुझे यह क्या कर दिया गया ? इस प्रकार (सम्भोग) क्रिया के अन्त में उन दोनों (लक्ष्मी और विष्णु) का मुस्कान भरा उत्तर- प्रत्युत्तर (दोनों के) मान का विरोधी (मान को शान्त करने वाला) हो गया ।।454।। यहाँ लक्ष्मी और नारायण के परस्पर एक दूसरे पर किये गये सम्भोग-कालिक चिह्न के आभास से उत्पन्न परस्पर (अकारण) मान मुस्कराहट पूर्वक (एक-दूसरे के ) उत्तर- प्रत्युत्तर से स्वयं शान्त हो गया। हेतुजस्तु शमं याति यथायोग्यं प्रकल्पितैः । साम्ना भेदेन दानेन नत्युपेक्षारसान्तरैः ।। २०८।। हेतुजमान की शान्ति - हेतुजमान यथोचित किये गये साम, भेद, दान, प्रजति, उपेक्षा और रसान्तर से शान्त होता है ।। २०८ ॥ तत्र प्रियोक्तिकथनं यत्तु तत्साम गीयते । १. साम- प्रिय बात कहना साम कहलाता है || २०९पू. ।। तेन यथा ममैव अनन्यसाधारण एष दासः चेतसि शङ्कयेति । किमन्यया प्रिये वदत्यादृतया कयाचि न्नाज्ञायि मानोऽपि सखीजनोऽपि ।।455 ।। जैसे शिङ्गभूपाल का ही अनन्य (दूसरी स्मणी में अनासक्त) साधारण (भोला भाला) यह तुम्हारा सेवक है, तुम अन्य (स्मणी में अनुरक्त होने की) शङ्का क्यों कर रही हो - आदरपूर्वक प्रियतम के इस प्रकार कहने पर किसी (नायिका) के द्वारा (अपने) मान और (अपनी) सहेलियों का ध्यान ही नहीं रहा।1455।। अत्र प्रियसामोक्तिजनिता कस्याचिन्मानशान्तिः सखीजनमानाद्यज्ञानसूचितैरालिङ्गनादिभिर्व्यज्यते । यहाँ प्रियतम के प्रिय कथन से किसी नायिका के मान की शान्ति हो गयी यह सखियों के सम्मान इत्यादि न करने से सूचित आलिङ्गन इत्यादि द्वारा व्यञ्जित होता है। सङ्ख्यादिभिरुपालम्भप्रयोगो भेद उच्यते । । २०९ ।। २. भेद - संख्या इत्यादि के द्वारा (गिन-गिन कर ) उलाहना देना भेद कहलाता
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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