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________________ [xxvi] अष्टाविंश में आतोद्य प्रयोग, एकोनत्रिंश में आतोद्य-विधान, त्रिंश में सुषिर आतोद्य का स्वरूप ,एकत्रिंश और द्वात्रिंश अध्याय में ताल और लय, त्रयोत्रिंश में गायक-वादक के गुण-दोष, चतुःत्रिंश में मृदङ्ग इत्यादि वाद्यों का विवेचन हुआ है। भूमिकापात्रविकल्पाध्याय नामक पञ्चत्रिंश अध्याय में नाट्यमण्डली की विशेषता, सूत्रधार, विट, विदूषक इत्यादि का वर्णन हुआ है। षट्त्रिंश अध्याय में दो आख्यानों के साथ नाट्यावतार का विवेचन हुआ है। सप्तत्रिंश अध्याय वाले संस्करण में इस अध्याय के अन्तर्गत नहुष-विषयक द्वितीय आख्यान का वर्णन हुआ है। भरत से पूर्ववर्ती आचार्य- महर्षि पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी में शिलाली और कृशाश्व के नाट्यशास्त्र (नटसूत्र) का उल्लेख किया है- पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षनटसूत्रयोः', 'कर्मन्दकृशाश्वादिनि (पा.अ.4.3.110-111)। हिलेब्रान्ड के अनुसार भारतीय नाट्यसाहित्य की ये प्राचीनतम कृति होनी चाहिए। इनके अतिरिक्त भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र के अन्त में अपने से पूर्ववर्ती कोहल, वात्स्य शाण्डिल्य और धूत्तिल- इन चार आचार्यों का नामोल्लेख किया है कोहलादिभिरेतैर्वा वात्स्यशाण्डिल्यधूर्तिलैः। एतच्छास्त्रं प्रयुक्तं तु नराणां बुद्धिवर्धनम् ॥... अभिनवगुप्त ने नाट्यशास्त्र की व्याख्या में अनेक बार कोहल के मतों को निर्दिष्ट किया है तथा सङ्गीताध्याय की व्याख्या तथा अन्य अध्यायों की व्याख्या में दत्तिल के मत का उल्लेख किया है किन्तु वात्स्य और शाण्डिल्य के मत को कहीं निर्दिष्ट नहीं किया है। नखकुट्ट और अश्मकुट्ट नाट्यशास्त्र से प्राचीन आचार्य माने जाते हैं नखकुट्ट और अश्मकट्ट का उल्लेख विश्वनाथ ने अपने साहित्यदर्पण में किया है। नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में भरत के सौ पुत्रों (शिष्यों में) कोहल, दत्तिल, शाण्डिल्य और धूर्तिल के अतिरिक्त इन दोनों दत्तकुट्ट और अश्मकुट्ट का भी नामोल्लेख हुआ है। इनके अतिरिक्त भरत के पुत्रों में बादरायण का भी उल्लेख हुआ है जिनको सागरनन्दी ने बादरायण और बादरि नाम से निर्दिष्ट किया है। शातकर्णी का भी नाम भरत के पुत्रों में उल्लिखित है। नाट्यशास्त्र में सङ्गीतविषयक विवेचन में तुम्बुरु का भी नाम आया है। नाट्यशास्त्र के टीकाकार- नाट्यशास्त्र पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी किन्तु वे सभी उपलब्ध नहीं होती। कुछ टीकाओं अथवा टीकाकारों के नाम का उल्लेख ही प्राप्त होता है जिनके आधार पर हम उन्हें नाट्यशास्त्र के टीकाकार के रूप में जान पाते हैं। इनमें से भरत-टीका, हर्षकृत वार्तिक, शाक्याचार्य राहुल कृत कारिकाएँ, मातृगुप्त कृतटीका का हमें केवल नाम या सङ्केत ही मिलता है। इनके अतिरिक्त अभिनवगुप्त ने अपने
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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