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________________ द्वितीयो विलासः [१९३] उत्स्वप्नायितनश्चल्यश्वासोच्छ्वासादयो मताः । (३२) सुप्ति निद्रा की अधिकता सुप्ति कहलाता है। इसमें इन्द्रियों की विरक्ति, नेत्र बन्द होना, शरीर का ढीला हो जाना, निद्रा में बड़बड़ाना, निश्चलता, श्वाँस-उच्छ्वास इत्यादि विक्रियाएँ कही गयी है।।९०-९१पू.॥ यथा अव्यासुरन्तःकरुणारसाानिःसर्गनिर्यनिगमान्तगन्धाः ।। श्वासानिलास्त्वां स्वपतो मुरारेः शय्याभुजङ्गेन्द्रनिपीतशेषाः ।।352।।। जैसे- शय्या बने शेषनाग के द्वारा पीने से शेष बची हुई सोते हुए कृष्ण की अन्तःकरुणारूपी रस से सिक्त और स्वभावतः निकलते हुए उपनिषदों के सुगन्ध से युक्त श्वांस की हवा तुम्हारी रक्षा करे।।352।। अथ बोधः स्वप्नस्पर्शननिध्वाननिद्रासम्पूर्णतादिभिः ।।११।। प्रबोधश्चेतनावाप्तिश्चेष्टास्तत्राक्षिमर्दनम् । शय्याया मोक्षणं बाहुविक्षेपोऽङ्गुलिमोटनम् ।।१२।। शिरः कण्डूयनं चाङ्गवलनं चैवमादयः । (३३) बोध स्वप्न, स्पर्श, ऊँची ध्वनि, निद्रा- पूर्ति इत्यादि द्वारा चैतन्यता प्राप्त होना बोध कहलाता है। उसमें आँख मलना, शय्या का छोड़ना, हाथों का फेंकना, अङ्गलियों का चटकाना, सिर खुजलाना, अङ्गों का ऐंठना इत्यादि इस प्रकार की चेष्टाएँ होती है।।९१उ.-९३पू.।। स्वप्नाद् यथा (कुमारसम्भवे ५/५७) त्रिभागशेषासु निशासु च क्षणं । निमील्य नेत्रे सहसा व्यबुध्यत ।... क्व नीलकण्ठ! व्रजसीत्यलक्ष्यवा गसत्यकण्ठार्पितबाहुबन्धना ।।353।। स्वप्न से जैसे (कुमारसम्भव के ५/५७ में) कभी-कभी रात के तीन भाग शेष रह जाने पर अर्थात् पहले ही पहर में यह जब क्षणमात्र के लिए सोती थी तो अकस्मात् चौंक कर जाग उठती और बड़बड़ाने लगती थी कि हे
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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