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________________ भूमिका नाट्य की रमणीयता काव्य के सभी भेदों में दृश्य (नाट्य) सार्वजनिक मनोरञ्जजनोन्मुकता, व्यापकता और सर्वाङ्गीणता, सत्यं शिवं सुन्दरं का योग तथा रसानुभूति की सुगमता के कारण उत्कृष्ट माना जाता है। नाट्य की रमणीयता के ये कारण हैं सार्वजनिक मनोरञ्जन का साधन- नाट्य या रूपक सार्वजनिक (सार्ववर्णिक) मनोरञ्जन का साधन है जिसकी रचना सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय होती है क्योंकि देवताओं के समाज में चिन्तन की इच्छा को ध्यान में रख कर ही ब्रह्मा ने पञ्चमवेद रूप इसकी सृष्टि किया है जैसा कि कहा गया है 'क्रीडनीयकमिच्छामि दृश्यं श्रव्यं च यद्भवेत् । तस्मात्सृजापरं वेदं पञ्चमं सार्ववर्णिकम् ॥' (नाट्यशास्त्र 1.1) चारों वेदों से केवल तीन वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का हित-सिद्ध होता है किन्तु इस सार्ववर्णिक पञ्चमवेद नाट्य से तो निर्धन-धनी, सवर्ण-असवर्ण, विद्वान्-मूर्ख सभी के लिए मनोरञ्जन तथा हित का साधन होता है। नाट्य से सभी वर्ग के लोग आनन्दानुभूति करते हैं क्योंकि दृश्य होने से वह हृद्य (रमणीय) होता है और श्रव्य होने से व्युत्पत्तिप्रद (उपदेशजनक)। इस प्रकार एक ही साथ सहृदय के हृदय में आनन्दानुभूति भी जगाता है और उसे कान्तासम्मित उपदेश भी देता है- 'दृश्यं हृद्यं श्रव्यं व्युत्पत्तिप्रदमिति प्रीतिव्युत्पत्तिप्रदम् ( नाट्यशास्त्र प्रथम अध्याय)। वस्तुतः नाट्यशास्त्र के आचार्यों ने नाट्य को सार्वजनिक मनोरञ्जन के साधन के रूप में स्वीकार किया है। महाकवि कालिदास ने यदि नाट्य को विभिन्न रूचि वाले प्राणियों के लिए एकमात्र आनन्द प्रदान करने वाला अद्वितीय समाराधन माना है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है- 'नाट्यं भिन्नरूचे जनस्य बहुधाप्येकं समाराधानम्' (मालविकाग्निमित्र 1.4)। ___ 2. व्यापकता तथा सर्वाङ्गीणता- नाट्य अपने विषय की परिधि में सम्पूर्ण त्रैलोक्य के चर-अचर को समेट लेता है। इसमें सम्पूर्ण त्रैलोक्य के भावों का अनुकीर्तन (प्रदर्शन) होता है संसार का कोई ऐसा ज्ञान, शिल्प, विद्या, कला, योग और कर्म नहीं है जो नाट्य में न हो। जैसा कहा गया हैरसा.२
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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