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________________ रसार्णवसुधाकरः गर्जितेन यथा (शिशुपालवधे ६.३८) प्रणयकोपभृतोऽपि पराङ्मुखाः सपदि वारिधरारवभीरवः । प्रणयिनः परिरब्धुमनन्तरं ववलिरे वलिरेचितमध्यमाः ।।265।। गर्जना से त्रास जैसे (शिशुपालवध ६.३८ में) प्रणयकलहयुक्त (अत एव रति से) विमुख भी अङ्गनाएँ तत्काल मेघ के गरजने से भयभीत होकर इसके बाद अर्थात् मेघ के गरजने पर भयभीत होने के उपरान्त त्रिवली- रहित उदर से युक्त होकर प्रियों का आलिङ्गन करने के लिए प्रवृत्त हुई।।265 ।। गार्जितं महारवोपलक्षणम् । तेन भेर्यादिध्वनिरपि भवति। भेरीध्वनिना यथा ननन्द निद्रारसभञ्जनैरपि प्रयाणतूर्यध्वनिभिर्धरापतेः । अतर्कितातङ्कविलोलपद्मजापयोधरद्वन्द्वनिपीडितो हरिः ।।266 ।। गर्जना (भयानक) महाध्वनि का द्योतक है। उस (गर्जना) से दुन्दुभि (नगाड़ा) इत्यादि की ध्वनि भी उपलक्षित है। मेरी ध्वनि से त्रास जैसे विष्णु के निद्रा के रस में बाधा पहुंचाने वाली प्रस्थान के लिए तुरही (एक प्रकार का वाद्य) की ध्वनि से (उत्पत्र) अप्रत्याशित आतंक के कारण चञ्चल (काँपती हुई) लक्ष्मी के दोनों स्तनों का मर्दन करते हुए हरि (विष्णु) आनन्दित हुए।।266।। भूतदर्शनाद्यथा___ सा पत्युः परिवारेण पिशाचैरपि वेष्टिता । उत्कम्पमानहृदया सखिभिः समबोध्यत ।।267 ।। भूतदर्शन से त्रास जैसे वह पति के परिवार से और पिशाचों से घिरी हुई अत एव कम्पित हृदय वाली (नायिका) सखियों द्वारा सम्बोधित की गयी।।267।। भुजङ्गमाद् यथा (रसकलिकायाम् १२२) कल्याणदायि! भवतोऽस्तु पिनाकपाणिपाणिग्रहे भुजङ्गकङ्कणभीषितायाः । संभ्रान्तदृष्टि सहसैव नमः शिवाये त्य?क्तिसस्मितनतं मुखमम्बिकायाः ।।268 ।। सर्प से त्रास जैसेशंकर के विवाह में (उनके) सर्प रूपी कङ्गन से भयभीत पार्वती का व्याकुल नेत्रों वाला
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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