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________________ | १५०। रसार्णवसुधाकरः लगे और आँखों को चारो ओर घुमाता हुआ वह मद की अधिकता के कारण आकाश का सहारा लेकर खड़ा हो गया।।251 ।।। अधमस्य मदवृद्धिर्यथातह तह गामीणबहू मदविवशा किंपि किंपि बाहरइ । जह-जह कुलवहुआओ सोऊणसरति पिहिअकण्ठाओ ।।252।। (तथा-तथा ग्रामीणवधूमंदविवशा किमपि किमपि व्याहरति । यथा यथा कुलवध्वः श्रुत्वा सरन्ति विहितकर्णाः ॥) अधम की मदवृद्धि जैसे मद के कारण विवश हुई अशिष्ट स्त्री कुछ-कुछ ऐसा व्यवहार करती है जिसको सुन कर कुलीन स्त्रियाँ कानों को बन्द करके (वहाँ से) हट जाती हैं।। 2 5 2 ।। ऐश्वर्यादिकृतः कश्चिन्मानो मद इतीरतः । वक्ष्यमाणस्य गर्वस्य भेद एवेत्युदास्महे ।।२२।। ऐश्वर्यादि से उत्पन्न मद का गर्व में अन्तर्भाव- ऐश्वर्य इत्यादि से उत्पन्न मान को भी कुछ लोग मद कहते हैं किन्तु वह आगे कहे जाने वाले गर्व का भेद है, अत: मैं (शिङ्गभूपाल) (उसके विवेचन के प्रति) उदासीन हो गया हूँ।।२२।। अथ गर्वः ऐश्वर्यरूपतारुण्यकुलविद्याबलैरपि । इष्टलाभादिनान्येषामवज्ञा गर्व ईरितः ।।२३।। अनुभावा भवन्त्यत्र गुर्वाधाज्ञाव्यतिक्रमः । अनुत्तरप्रदानं च वैमुख्यं भाषणेऽपि च ।।२४।। विभ्रमापहनुती वाक्यपारुष्यमनवेक्षणम् । अवेक्षणं निजाङ्गानामङ्गभङ्गादयोऽपि च ।।२५।। (७) गर्व- ऐश्वर्य, रूप, तारुण्य, कुल, (उच्चवंश), विद्या, बल, अभीष्ट-प्राप्ति इत्यादि के कारण दूसरे लोगों का तिरस्कार करना गर्व कहलाता है। गुरु (आदरणीय जन) की आज्ञा का उल्लंघन, कहे जाने पर उत्तर न देना और मुख फेर लेना, इधर-उधर टहलना, सत्य को छिपाना, वाणी में कठोरता, किसी की ओर न देखना अथवा अपनी ओर ही
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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