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________________ | १४२ रसार्णवसुधाकरः काँपने से चञ्चल अङ्गुलियों से युक्त हो जाता है। अतः मैं क्या करूँ।।231 ।। यहाँ (मालती का) चित्र बनाने के लिए प्रस्तुत कार्य का निर्वाह न कर पाने के कारण माधव के 'क्या करूँ' इस कथन से सूचित उस (मालती) के दर्शन के उपाय की चिन्ता से विषाद व्यञ्जित होता है। इष्टानाप्तेर्यथा (रघुवंशे ६-६७) सञ्चारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिंवरा सा । नरेन्दमार्गाट्ट इव प्रपेदे विवर्णभावं स स भूमिपालः ।।232।। अत्रेन्दुमतीमाकाङ्क्षतां भूमिपतीनां तदनवाप्त्या मुखवैवण्येन विषादः। अभीष्ट (वस्तु) की प्राप्ति न होने से (विषाद) जैसे (रघुवंश ६-६७ में) जिस प्रकार रात में आगे बढ़ने वाली दीपशिखा राजमार्ग पर बने हुए जिस महल को पार कर जब आगे बढ़ जाती है तब वह महल अधेरे से व्याप्त हो जाने के कारण शोभारहित हो जाता है उसी प्रकार पति को स्वयं वरण करने वाली वह इन्दुमती जिस जिस राजा को छोड़कर आगे बढ़ती जाती थी वह राजा उदासीन होता जाता था।।232।। यहाँ इन्दुमती की अभिलाषा करने वाले राजाओं के उसे न पाने पर मुख की विवर्णता के कारण विषाद है। विपत्तितो यथा (उत्तरामचरिते १.४०) हा हा धिक् परवासगर्हणं यद् वैदेयाः प्रशमितमद्भुतैरुपायैः । एतत् तत् पुनरपि दैवदुर्विपाका दालकविषमिव सर्वतः प्रविष्टम् ।।233 ।। अत्र सीतापवादरूपाया विपत्तेः हा हा धिगिति वागारम्भेण रामस्य विषादो गम्यते। विपत्ति से विषाद जैसे (उत्तररामचरित में) (राम कहते हैं-) हाय! हाय! धिक्कार है!! सीता का दूसरे के घर में रहने का जो दोष अनूठे उपायों से हटाया गया था, भाग्य के दुष्परिणाम से वही दोष पागल कुत्ते के विष की तरह फिर सब जगह फैल गया। 233 ।। यहाँ सीता विषयक अपवाद रूपी विपत्ति के कारण 'हाय हाय धिक्कार है' इस कथन से राम का विषाद स्पष्ट होता है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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