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________________ प्रथमो विलासः [१३१] अथ स्वरभेदः__ वैस्वर्यं सुखदुःखाद्यैस्तत्र स्युर्गद्गदादयः ।।३०६।। ४. स्वरभेद- सुख,दुःख इत्यादि के कारण गद्गदादि विस्वरता होती है।।३०६उ.।। सुखेन यथा पश्येम तं भूय इति ब्रुवाणां सखीं वचोभिः किल सा ततर्ज । न प्रीतिकर्णेजपतां गतानि भूयो बभूवुः स्वरवैकृतानि ।। 21 2 ।। अत्र प्रियसंस्मरणजनितेन हर्षेण भूयो वैस्वर्यम् । सुख से स्वरभेद जैसे "उस (नायक) को मैं फिर देखुंगी" इस प्रकार कहती हुई सखी को उस (नायिका) ने अपने वचनों से डाँट दिया और फिर स्वर में हुए विकार (भेद) कर्णों को प्रिय लगने वाले जपत्व को प्राप्त हुए (अर्थात् जिस प्रकार देवताओं को तत् -सम्बन्धी जप प्रिय होता है उसी प्रकार उस नायिका के स्वर में हुआ विकार प्रियता को प्राप्त किया)।।212 ।। यहाँ प्रियतम के संस्मरण से उत्पन्न हर्ष से विस्वरता है। दुःखेन यथा (रघुवंशे ८/४३) विललाप स बाष्पगद्गदं सहजामप्यपहाय धीरताम् । अभितप्तमयोऽपि मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिषु ।।213 ।। यहाँ प्रियतम के स्मरण से उत्पन्न हर्ष के कारण स्वर भेद है। दुःख से स्वरभेद जैसे (रघुवंश ८.४३ में) वे अज अपने स्वाभाविक धैर्य को छोड़कर आँसू से गद्गद होकर विलाप करने लगे, जब अचेतन लोहा भी अग्नि में तपाये जाने पर पिघल जाता है तब शोक से सन्तप्त प्राणियों का क्या कहना है? || 213।। अथ वेपथु: वेपथुर्हर्षसन्त्रासजराक्रोधादिभिर्भवेत् । तत्रानुभावाः स्फुरणगात्रकम्पादयो मताः ।।३०७।। ५. वेपथु (कम्पन)- वेपथु (कम्पन) हर्ष, भय, बुढ़ापा, क्रोध इत्यादि से उत्पन्न होता है। उसमें अङ्गों का फड़कना तथा काँपना इत्यादि अनुभाव कहे गये हैं।।३०७।। हर्षेण त्रासेन यथा तदङ्गमानन्दजडेन दोष्णा रसा.१२
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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