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________________ प्रथमो विलासः [६३ लाक्षारसः पुनरभून तु भूषणाय ।।82।। जैसे उत्प्रेक्षावल्लभ का अलक्तक लगाने के लिए सखी के तरुण कमल के समान कोमल हाथ से केवल उठाया गया किसी (तरुणी) के पैरों का अग्रभाग (हाथ से स्पर्श के कारण) लाल हो गया फिर अलक्तक (उसके) सजाने के लिए (उपयोगी) नहीं हुआ।।82 ।। अथाधमसौकुमार्यम् येनाङ्गमातपादीनामसहं तदिहाधमम् ।।१८६।। अघमसौकुमार्य- जिस सौकुमार्य के कारण अङ्ग धूप इत्यादि का स्पर्श सहने में समर्थ नहीं होते, वह अधम सौकुमार्य होता है।।१८६उ.।। यथा आमोदमामोदनमादधानं निलीननीलालकचञ्चरीकम् । पद्मालयाया मुखपद्मस्या निरूढरागं कृतमातपेन ।।83 ।। जैसे प्रसत्र करने वाली सुगन्ध को धारण करने वाले और नीले (काले) घुघराले बालों रूपी भ्रमरों से युक्त इस लक्ष्मी के मुख रूपी कमल को आतप (धूप) ने लालिमा से युक्त कर दिया है।।83।। तच्चेष्टा लीलाविलासादयः । तेप्यनुभावप्रकरणे वक्ष्यन्ते । इस सौकुमार्य में लीला, विलास इत्यादि चेष्टाएँ होती हैं। उन्हें (द्वितीय विलास के) अनुभाव प्रकरण में निरूपित किया जाएगा। अथालङ्कृतिः___चतुर्धालङ्कृतिर्वासोभूषामाल्यानुलेपनैः । ३. अलंकृति- वस्त्र, भूषा, माल्य और अनुलेपन भेद से अलङ्कति चार प्रकार की होती है। तत्र वस्त्रालङ्कारो यथा (कुमारसम्भवे ७.२६) क्षीरोदवेलेव सफेनपुञ्जा पर्याप्तचन्द्रेव शरत्त्रियामा । नवं नवक्षौमनिवासिनी सा. भूयो बभौ दर्पणमादधाना ।।84।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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