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________________ तृतीये आख्याताध्यायेऽष्टमो घुडादिपादः ४४१ है, जब कि पाणिनीय ‘खर्' प्रत्याहार का निर्देश भ्रामक ही कहा जाएगा, क्योंकि 'खर्' प्रत्याहार में 'श्' प्, स्' इन वर्गों का भी ग्रहण होता है। [विशेष वचन] १. इहाप्यघोषे प्रथमः इति सिद्धे नियमार्थम् (वि० प०; द्र०-टीका) । [रूपसिद्धि] १. धोक्षि । दुह् + सि । 'दुह प्रपूरणे' (२०६१) धातु से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक म० ए० - ए० व० 'सि' प्रत्यय, अन् विकरण, उसका लोप, “नामिनश्चोपधाया लघो:" (३।५।२) से उकार को गण-ओकार, “दादेर्घः' (३।६।५७) से हकार को घकार, "तृतीयादेर्घढधभान्तस्य धातोरादिचतुर्थत्वं सध्वोः' (३।६।१००) से दकार को धकार, प्रकृत सूत्र से घकार को ककार, “नामिकरपरः प्रत्ययविकारागमस्थ: सिः षं नुविसर्जनीयषान्तरोऽपि" (२।४।४७) से सकार को षकार तथा 'क्-ष्' संयोग से क्षकार वर्ण की निष्पत्ति। २. भेत्ता। भिद् + ता। 'भिदिर् विदारणे' (६।२) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक प्र० पु०ए० व० 'ता' प्रत्यय, उपधागुण तथा प्रकृत सूत्र से दकार को तकार आदेश। ३. बुभुत्सते। बुध् + सन् + अन् + ते। 'बुध अवगमने' (१।५६६) धातु से इच्छार्थक ‘सन्' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, 'बुभुध् + स' इस स्थिति में प्रकृत सूत्र से धकार को तकार 'बुभुत्स' की धातुसंज्ञा, वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपद प्र० पु०-ए० व० 'ते' प्रत्यय, अन् -विकरण तथा अकारलोप। ४. युयुत्सते। युध् + सन् + ते। 'युध संप्रहारे' (३।११०) धातु से सन् प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से धकार को तकार, 'युयुत्स' की धातुसंज्ञा, 'ते' प्रत्यय, अन् विकरण तथा अकार का लोप। ५. आरिप्सते। आ + रभ् + सन् + अन् + ते। 'रभ राभस्ये' (१।४७१) धातु से इच्छार्थक सन् प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से भकार को पकार, “सनि मिमीमादारभलभशकपतपदामिस् स्वरस्य' (३।३।३९) से इस आदेश-अभ्यासलोप, धातुसंज्ञा, 'ते' प्रत्यय, अन् - विकरण तथा अकार का लोप।।८२९। ८३०. भृजः स्वरात् स्वरे द्विः [३।८।१०] [सूत्रार्थ स्वरसंज्ञक वर्ण के परे रहते 'भृज्' धातुघटित स्वर से पावर्ती जकार को द्वित्व होता है ।।८३०। [दु० वृ०] भृजः स्वरात् परस्य स्वरे द्विर्भवति। भृजी-बभृज्जे, बभृज्जाते, बभृज्जिरे। आद्यव्याकरणमतमेतत्।।८३०। [दु० टी०] भृजः। 'भृजी भर्जने' (१।३४६) इति भ्वादावात्मनेपदी। आयेत्यादि। आधुनिकव्याकरणेषु नैतल्लक्षणमस्तीति भावः। ऋत इति सिद्धे स्वरादिति स्पष्टार्थम् ।।८३०।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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