SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कातन्त्रव्याकरणम् [समीक्षा] 'ब्राह्मणायते, हरितायते, लोहितायते' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में पुंवद्भाव किया गया है। पाणिनि का सूत्र है - "क्यङ्मानिनोश्च" (अ० ६।।३६)। यह ज्ञातव्य है कि पाणिनि का पुंवद्भावप्रकरण पर्याप्त विस्तृत है, जिसमें ९ सूत्र हैं – (अ०६।३।३४-४२)। कातन्त्रव्याख्याकारों ने प्रकरण के अनुसार अपेक्षाओं की पूर्ति व्याख्यानबल से की है। [विशेष वचन] १. व्यर्थे तु न भवति गौणत्वात्। ...... लोहिनीयते इत्यन्ये (दु० वृ०)। २. पुमानिव पुंवत् स्त्रीति लोकत: सिद्धम् (दु० वृ०)। ३. श्वशुरस्य श्वश्रूरूङन्तो निपातनान्नाप्तिभावत्वं श्वशुरत्वम्, अपि तु विशिष्टमेव रूढम् (दु० वृ०)। ४. स्वोत्प्रेक्षैषा, न च भाष्यादौ निदर्शनमस्ति (दु० टी०)। ५. द्रोणशब्दः पुंसि चतुराढकपरिमाणे वर्तते स्त्रियां तु जलक्षेपणे इति नार्थो भाषितपुंस्क: (वि० प०)। ६. इहावयवानवयवकृतं भेदमुत्सृज्यान्तवर्त्तित्वमात्रमेकं प्रवृत्तिनिमित्तं विवक्षितम् (वि० प०)। ७. चरणत्वाज्जातिरेव। यथा कठायते इति कठाध्ययनयोगात् कठ इति (बि० टी०)। ८. अत्र संस्थानव्यङ्ग्या जातिगुह्यते, न तु आचारार्थम् (बि० टी०)। ९. टीकाकारेणापि 'लिङ्गानां च न सर्वभाक्' इत्यस्योदाहरणं ब्राह्मणीति वक्ष्यते (बि० टी०)। १०. जातिस्तु पुंवत् क्वचिदायियोगे (बि० टी०)। ११. आङ्पूर्वकृधातुर्जनने वर्तते (बि० टी०)। १२. अवयवनाशे समुदायस्य नाशो भवति, यथा घटावयवनाशे घटनाशो भवति (बि० टी०) [रूपसिद्धि] . १. ब्राह्मणायते। ब्राह्मणी + आयि + अन् + ते। ब्राह्मणीवाचरति।. ब्राह्मणी' शब्द से “कर्तुरायि: सलोपश्च' (३।२।८) सूत्र द्वारा 'आयि' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से 'ब्राह्मणी' शब्द का पुंवद्भाव, “ते धातवः' (३।२।१६) से 'ब्राह्मणाय' की धातुसंज्ञा, वर्तमानासंज्ञक 'ते' प्रत्यय तथा “अन् विकरण: कर्तरि" (३।२।३२) से 'अन्' विकरण। २. श्वेतायते। श्वेनी + आयि + अन् + ते। श्वेनीवाचरति। श्वेनी' शब्द से 'आयि' प्रत्यय, पुंवद्भाव, धातुसंज्ञा, 'ते' प्रत्यय तथा 'अन्' विकरण। ३. एतायते। एनी + आयि + अन् + ते। एनीवाचरति। ‘एनी' शब्द से 'आयि' प्रत्यय, पुंवद्भाव, धातुसंज्ञा, 'ते' प्रत्यय तथा 'अन्' विकरण।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy