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________________ तृतीये आख्याताध्याये षष्ठोऽनुषङ्गलोपादिपादः [समीक्षा] " 'तेरतु:, विशशरुः, निचकरतु:' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ गुणविधान की व्यवस्था दोनों ही आचार्यों ने की है। पाणिनि का सूत्र है - "ऋच्छत्यृताम् ” (अ० ७। ४। ११)। पाणिनि ने 'ऋच्छ' धातु को इसी सूत्र में पढ़ दिया है, जबकि कातन्त्रकार उसे पृथक् सूत्र में रखते हैं। [विशेष वचन ] १. ऋत् अन्ते येषामित्यन्तग्रहणं स्पष्टार्थमेव, तपरकरणमसन्देहार्थम् (दु० टी०) २. अनेकार्था हि धातवो भवन्ति, ते पुन: परोक्षायामेवाभिधीयन्ते (दु० टी० ) ! ३. छान्दसा ह्येते प्रयोगा इति (दु० टी० ; वि० प० ) । [रूपसिद्धि] १. तेरतुः । तृ + परोक्षा–अतुस्। 'तॄ प्लवनतरणयोः' (१। २८३) धातु से परोक्षाविभक्तिसंज्ञक परस्मैपद - प्र०पु० - द्विव० 'अतुस्' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से गुण, “तृफलभजत्रपश्रन्थिग्रन्थिदन्भीनां च " ( ३।४।५३) से एत्व-अभ्यासलोप तथा “रेफसोर्विसर्जनीय:” (२ । ३ । ६३) से विसर्गादेश । २५९ २. तेरुः। तॄ + परोक्षा–उस् । 'तू प्लवनतरणयोः ' (१ । २८३) से परोक्षासंज्ञक ‘उस्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् । ३. विशशरतुः। वि + शृ + परोक्षा - अतुस् । 'वि' उपसर्गपूर्वक ‘श्रृ हिंसायाम्’ (८। १५) धातु से परोक्षाविभक्तिसंज्ञक 'अतुस्' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से गुण तथा सकार को विसर्गादेश । ४. विशशरुः । वि + श्रृ + परोक्षा – उस् । 'वि' उपसर्गपूर्वक ‘श्रृ हिंसायाम्’ (८ । १५) धातु से उस् प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् । ५. विददरतुः । वि + दृ परोक्षा–अतुस्। 'वि' उपसर्गपूर्वक 'दृ + (८ । १९) धातु से 'अतुस्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् । ६. विददरुः । वि + दृ (८ । १९) धातु से 'उस्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् । विदारणे' + परीक्षा उस्। ‘वि ́ उपसर्गपूर्वक 'दृ विदारणे' - ७. निपपरतुः । : । नि + + परोक्षा पृ अतुस्। 'नि' उपसर्गपूर्वक 'पृ पालनपूरणयो:' (८। १६) धातु से अतुस् प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् । ८. निपपरु: । नि + पृ + परोक्षा - उस् । 'नि' उपसर्गपूर्वक पॄ पालनपूरणयोः' (८ । १६) धातु से 'उस्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।। ६९६ । ६९७. ऋच्छ ऋत: [३ । ६ । १७ ] [सूत्रार्थ] गुणी तथा अगुण परोक्षासंज्ञक प्रत्यय के परे रहते 'ऋन्छ' धातुघटित - ऋकार को गुण आदेश होता है ।। ६९७।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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