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________________ तृतीये आख्याताध्याये पञ्चमो गुणपाद: आगमार्थः। शेते: परो रित् भवतीति आगमस्वरूपः, अन्तौ परे 'र' आगमस्वरूपः, ततः परगमने सति सिद्धम्। न च वक्तव्यम्, अत्र पक्षे इकारशङ्का कथं न स्यात् 'र्य' इत्यकरणात्। इकारे कृतेऽन्ते रित्वं स्यादेव, तदेव कृतं स्वात् ? सत्यम्, वर्णागमे कृते सार्वधातुकस्य व्यवधानात् "शीङः सार्वधातुके' (३। ६। १८) इति गुणो न स्यात् ।। ६७२। [समीक्षा] 'शीङ्' धातु से सिद्ध होने वाले 'शेरते, शेरताम्, अशेरत' इत्यादि शब्दों में रेफ की जो उपस्थिति अनिवार्य होती है, उसका अवबोध पाणिनि ने “शीङो रुट' (अ० ७।१।६) सूत्र द्वारा 'रुट' आगम से कराया है और कातन्त्रकार ने प्रत्ययावयव अकार से पूर्व रकारागम से। अत: उभयत्र साम्य है। [विशेष वचन] १. इकार उच्चारणार्थ : (दु० टी०;वि० प०)! २. अवयवावयवः समुदायावयवा भवति (दु० टी०)। ३. आदिग्रहणम् आगमार्थम्, अन्यथा आदेश: स्यात् (दु० टी०)। ४. वक्तव्यमिति। अयं तु नेच्छत्येव, केचिदिच्छन्तीति भावः (दु० टी०; वि० प०) [रूपसिद्धि] १. शेरते। शी + अन्ते। ‘शीङ् स्वप्ने' (२। ५५) धातु से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-प्रथमपुरुष – बहुवचन 'अन्ते' प्रत्यय, 'अन्' विकरण का लोप, “शीङ: सार्वधातुके'' (३।६।१८) से 'शी' धातुघटित ईकार को गुण एकार, प्रकृत सूत्र द्वारा प्रत्यय से पूर्व 'र' का आगम तथा “आत्मने चानकारात्' (३। ५। ३९) से नकारलोप। २. शेरताम्। शी + अन्ताम्। 'शीङ् स्वप्ने' (२। ५५) धातु से पञ्चमीसंज्ञक प्रथम पुरुष - बहुवचन ‘अन्ताम्' प्रत्यय, गुण, रकारागम तथा नकारलोप।। ३. अशेरत। अट् + शी + ह्यस्तनी – अन्त। 'शीङ् स्वप्ने' (२। ५५) धातु से ह्यस्तनीविभक्तिसंज्ञक प्रथमपुरुष -- बहुवचन ‘अन्त' प्रत्यय, "अड् धात्वादिहस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु' (३। ८। १६) से धातुपूर्व अडागम, अन्-विकरण का लोप, गुण, रकारागम तथा नकारलोप ।। ६७२ । ६७३. अकारादट औ [३। ५। ४१] [सूत्रार्थ धातुघटित आकार से परवर्ती 'अट्' प्रत्यय के स्थान में औकार आदेश होता है।। ६७३।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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