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________________ तृतीये आख्याताध्याये पञ्चमो गुणपाद: १९५ [वि० प०] विजे:। 'विजिर पृथग्भावे' (२। ८२) इत्यस्य न ग्रहणम् “युजिरुजि०" (३। ७। २०) इत्यादिनाऽनिट् स्यात्। अत: 'ओ विजी भयचलनयोः' (५ । ११५, ६।१९) इत्ययमेव तौदादिक आत्मनेपदी गृह्यते इत्याह - ओ विजीत्यादि। कथमित्यादि। हेत्विनन्ताष्ठायामिडागमे "निष्ठेटीनः" (४।१। ३६) इति कारितलोपः।। ६६०।। [समीक्षा] 'उद्विजिता, उद्विजितुम्' इत्यादि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ 'ओ विजी भयचलनयो:' (५। ११५; ६।१९) धातुगत इकार के गुणनिषेध की अपेक्षा होती है, जिसकी पूर्ति दोनों व्याकरणों में की गई है। पाणिनि का सूत्र है – “विज इट'' (अ० १।२।२)। इस सत्र से इडादिप्रत्यय को डिदवभाव होता है, जिसके फलस्वरूप “क्डिति च" (अ० १।१। ५) से गुणनिषेध होने पर उक्त रूप सिद्ध होते हैं। कातन्त्रकार इस पारम्परिक प्रक्रिया को न अपनाकर साक्षात् ही गुण का प्रतिषेध करते हैं। व्याख्याकारों के अनुसार यहाँ 'विजिर् पृथग्भावे' (२८२) धातु का ग्रहण नहीं होता, क्योंकि उसमें “यजिरुचिरुन्जिभजिभजिभन्जिसन्जित्यजिभ्रस्जियजिमस्जिसृजिनिजिविजिस्वन्जेर्जात्" (३७।२०) सूत्र द्वारा इडागम प्रवृत्त न होने से गुणनिषध नहीं होगा। [रूपसिद्धि] १. उद्विजिता। उद् + विजी + इट् + ता। 'उद्' उपसर्गपूर्वक ओ 'विजी भयचलनयो:' (५ । ११५) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक प्रथमपुरुष –एकवचन 'ता' प्रत्यय, "इडागमोऽसार्वधातुकस्यादिळञ्जनादेरयकारादे:' (३। ७। १) से इडागम तथा प्रकृत सूत्र से गुणादेश का निषेध। २. उद्विजितुम्। उट् + विजी + इट् + तुम्। 'उद्' उपसर्गपूर्वक 'ओ विजी भयचलनयो:' (५ । ११५) धातु से “वुणतुमो क्रियायां क्रियार्थायाम्' (४।४६९) सूत्र द्वारा 'तुम्' प्रत्यय, इडागम, गुणनिषेध, लिङ्गसंज्ञा, 'सि' प्रत्यय, अव्ययसंज्ञा तथा "अव्ययाच्च'' (२४।४) से 'सि' प्रत्यय का लुक्। ३. उद्विजिष्यते। उद् + विजी + इट् + स्यते। उद्' उपसर्गपूर्वक 'ओ विजी भयचलनयोः' (५ । ११५) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यते' प्रत्यय, इडागम, मूर्धन्यादेश तथा प्रकृत सूत्र से गुणनिषेध।। ६६० । ६६१. स्थादोरिरद्यतन्यामात्मने [३। ५। २९] [सूत्रार्थ] अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद प्रत्ययों के परे रहते ‘स्था' धातु तथा 'दा'संज्ञक धातुओं के अन्तिम आकार को इकारादेश होता है।। ६६१ ।।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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