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________________ तृतीये आख्याताध्याये पञ्चमो गुणपाद: १७१ [समीक्षा] 'कृषीष्ट, अकृत' आदि के सिद्ध्यर्थ ऋकार को गुणनिषेध करना अपेक्षित होता है, इसकी पूर्ति दोनों व्याकरणों में की गई है। अन्तर यह है कि कातन्त्रकार ने साक्षात् गुणनिषेध प्रकृत सूत्र द्वारा किया है, जबकि पाणिनि ने “उश्च'' (अ० १। २ । १२) सूत्र द्वारा ऋवर्णान्तधातु से परवर्ती आशीर्लिङ् लकार तथा सिच् प्रत्यय को किद्भाव करके 'क्ङिति च" से गुणनिषेध का निर्देश किया है। व्याख्याकारों ने सूत्रस्थ ऋ के ह्रस्व-दीर्घ दोनों ही पाठ माने हैं तथा ह्रस्व ऋकार से समीपवर्ती दीर्घ ऋकार का ग्रहण किया है। [विशेष वचन] १. सिजाशिषोश्चात्मने इविकल्पेष्टिरिति, ऋकारस्योपलक्षणत्वात् (दु० वृ०)। २. तपरकरणमसन्देहार्थम् (दु० टी०)। ३. अन्तशब्दोऽत्र समीपवाची (दु० टी०)। ४. ऋवर्ण इति न कृतम्, वैचित्र्यार्थम् (दु० टी०)। ५. सूत्रकारमतं तु सिजाशिषोरात्मने ऋतां नित्यमिडागम इति लक्ष्यते (दु० टी०)। ६. ऋकार: सन्निहितमेव सवर्णम् ऋकारमुपलक्षयति (वि० प०)। [रूपसिद्धि] १. अकृत। अट् + कृ + सिच्–लोप + त। ‘डु कृञ् करणे' (७७) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद-प्रथमपुरुष-एकवचन 'त' प्रत्यय, “अड् धात्वादिहस्तन्यद्यतनीक्रियातिपत्तिषु" (३ । ८ । १६) से धातुपूर्व अडागम, सिच् प्रत्यय, अनिट्, प्रकृत सूत्र से अगुण तथा "ह्रस्वाच्चानिट:" (३। ६। ५२) से सिच्प्रत्यय का लोप। २. अकृषाताम्। अट् + कृ + सिच् + आताम्। 'डु कृञ् करणे' (७७) धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक 'आताम्' प्रत्यय, अडागम, अनिट, गुणनिषध, सिच् प्रत्यय तथा मूर्धन्य षकारादेश। ३. कृषीष्ट। कृ + सीष्ट। 'डु कृञ् करणे' (७। ७) धातु से आशीविभक्तिसंज्ञक आत्मनेपद प्रथमपुरुष–एकवचन 'सीष्ट' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से गुण का निषेध तथा मूर्धन्य षकारादेश।। ६४३। ६४४. स्थादोश्च [३। ५। १२] [सूत्रार्थ सिन्प्रत्ययविषयक आत्मनेपदसंज्ञक प्रत्यय के परे रहते 'स्था' तथा 'दा' धातुसम्बन्धी नामी वर्ण को गुण नहीं होता है।। ६४४ । [दु० वृ०॥ स्थादासंज्ञकयोश्च नामिन: सिच्यात्मनेपदे गुणो न भवति। समस्थिषत, समस्थिषाताम्। अदित, अदिषाताम्। अधित, अधिषाताम्। नामिन इति किम् ? स्थासीष्ट, दासीष्ट।। ६४४।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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