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________________ तृतीये आख्याताध्याये तृतीयो द्विर्वचनपादः ३९५ निर्देश में लाघव तथा पाणिनि के विधान में गौरव सन्निहित है । 'बाभाम्यते' में अनुस्वारागम नहीं होता है क्योंकि वहाँ अभ्यासान्त में हस्व अकार लाक्षणिक है प्रतिपदोक्त नहीं और लाक्षणिक - प्रतिपदोक्त में से प्रतिपदोक्त का ही ग्रहण होता है लाक्षणिक का नहीं । पूर्वसूत्र से 'अन्त' शब्द की अनुवृत्ति करके ही अभीष्टसिद्धि होने पर पुनः इस सूत्र में 'अन्त' शब्द का उपादान सिद्ध करता है कि "वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा’” (१।४।१६) सूत्र द्वारा अनुस्वार के स्थान में मकारादि आदेश तो होते ही हैं, पक्ष में अनुस्वार की भी स्थिति बनी रहती । इन दोनों ही तथ्यों का स्पष्टीकरण पञ्जिकाकार त्रिलोचनदास ने इस प्रकार किया है - " बाभाम्यते इति । भाम क्रोधे | अभ्यासस्य ह्रस्वत्वे कृते लाक्षणिकोऽयमकार इति, ततो दीर्घः । पूर्वसूत्रादन्तग्रहणं वर्तते, अत एवागमत्वे लब्धे यत् पुनरन्तग्रहणं तन्नागमार्थम् अपि तु विरत्यर्थम्, ततो " वर्गे तद्वर्गपञ्चमं वा " (१।४।१६ ) इत्यस्य विषयत्वादनुस्वारः पक्षे तिष्ठति " ( वि० प० ) । [विशेष वचन ] १. पुनरन्तग्रहणमनुस्वारस्यापि स्थित्यर्थम् (दु० वृ० ) । २. अन्तस्था द्विप्रभेदा:- सानुनासिका निरनुनासिकाश्च (दु० टी० ; वि० प० ) । ३. तकार उच्चारणार्थः (दु० वृ०; बि० टी० ) । ४. अवयवावयवोऽपि समुदायस्यावयव इत्यदोषः (बि० टी० ) । [ रूपसिद्धि] १. भण्वते । भण् + य + ते । पुनः पुनरतिशयेन वा भणति । 'भण् शब्दे' ( १ । १४६ ) धातु से क्रियासमभिहार अर्थ में " धातोर्यशब्दश्चेक्रीयितं क्रियासमभिहारे " (३ । २।१४ ) से 'य' प्रत्यय, "चण्परोक्षाचेक्रीयितसनन्तेषु " ( ३।३।७ ) से धातु को द्विर्वचन, अभ्याससंज्ञा, णकार का लोप, अभ्यासान्त में अनुस्वारागम, "ते धातवः” (३।२।१६) से 'बंभण्य' की धातुसंज्ञा, वर्तमानासंज्ञक 'ते' प्रत्यय तथा अन् - विकरणादि कार्य । २ . बंभणिता । भण् + य + ता । यप्रत्ययान्त 'भण शब्दे' (१ | १४६) धातु से (बंभण्य) श्वस्तनीसंज्ञक प्रथमपुरुष एकवचन 'ता' प्रत्यय, इडागम तथा यलोप । ३. यंयम्यते । यंयम् + य + ते । 'यम उपरमे' (१।१५८) धातु से चेक्रीयितसंज्ञक 'य' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, अनुस्वारागम, धातुसंज्ञा तथा विभक्तिकार्य ।
SR No.023089
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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