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________________ १४ कातन्त्रव्याकरणम् ११९. पृथग्योगस्तिनिर्देशश्च सुखार्थः (दु० टी०, बि० टी० ३।३।२५)। १२०. वर्णग्रहणं सुखार्थम् (बि० टी० ३।३।२७)। १२१. चेक्रीयितग्रहणं सुखार्थम् (दु० टी० ३।३।२८)। १२२. दीर्घग्रहणं सुखार्थम् (बि० टी० ३।३।२९)। १२३. चण्परग्रहणमिहापि सुखार्थं भवति (वि० प० ३।३।३५)। १२४. तपरः सुखार्थ एव (दु० टी० ३।३।४०)। [स्पष्टार्थम् - ४] १२५ योगग्रहणमिह स्पष्टार्थम् (दु० टी० ३।१।२३)। ५२६. 'प्रयुज्यते' इति स्पष्टार्थम् (दु० वृ० ३।२।२२)। १२७. 'प्रयुज्यते' इति स्पष्टार्थमिति (वि० प० ३।२।२२)। १२८. एदिति सिद्धे गुणग्रहणं स्पष्टार्थम् (बि० टी० ३।३।३३)। [स्वरूपार्थम् - १] १२९. ख्यातेस्तु तिपा निर्देशः स्वरूपार्थः (दु० टी० ३।२।२७)। एषां संग्रहः एवं द्रष्टव्यः (१२९) क्र०सं० प्रयोजनम् संख्या क्र०संग प्रयोजनम् संख्या अगुणार्थम् १५. प्रतिपत्तिलाघवार्थम् अनुक्तसमुच्चयार्थम् १६. प्रतिपत्त्यर्थम् इष्टार्थम् प्राचीनप्रयोगदर्शनार्थम् उच्चारणार्थम् बाधकबाधनार्थम् उत्तरार्थम् |बालावबोधार्थम् उभयसंज्ञानिरासार्थम् मङ्गलार्थम् कटाक्षार्थम् मन्दमतिबोधार्थम् गौरवनिरासार्थम् योगविभागार्थम् द्विर्वचनार्थम् रूढ्यर्थम् निमित्तार्थम् लाघवार्थम् |नियमार्थम् विचित्रार्थम् परमतदर्शनार्थम् विप्रतिपत्तिनिरासार्थम् । १३. पूर्वाचार्यमतदर्शनार्थम् विभाषाख्यापनार्थम् प्रतिपत्तिगौरवनिरासार्थम् २८. विशेषणार्थम् ܩ ܩ ܚ ܢܬ ܩ ܘ ܩ ܐ ܚ ܗ ܩ ܩ ܩ ܟ ܩ ܟ ܩ ܚ ܩ ܩ ܚ ܩ ܩ ܩ ܩ ܩ ܚ
SR No.023089
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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