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________________ ५७ नामचतुष्टयाध्याये चतुर्षः कारकपादः नारदपुराण- उभ्यांभ्यसश्चतुर्थी स्यात् सम्प्रदाने च कारके। __ यस्मै दित्सा धारयेद् वै रोचते सम्प्रदानकम् ।। (५२।६)। शब्दशक्तिप्रकाशिका - गत्यादिभिन्ने धात्वर्थे चतुर्था विग्रहस्थया | यः स्वार्थो बोधनीयस्तत् संप्रदानत्वमीरितम् ।। (कारिका ७०)। [रूपसिद्धि] १. ब्राह्मणाय गां ददाति । यहाँ ब्राह्मण को गाय देने की इच्छा है, अतः उसकी प्रकृत सूत्र से सम्प्रदानसंज्ञा तथा "चतुर्थी सम्प्रदाने" (अ० २।३।१२) से उसमें चतुर्थी विभक्ति का विधान । २-३= देवदत्ताय रोचते मोदकः । यज्ञदत्ताय स्वदते । मोदक में देवदत्त की रुचि होने से उसकी संप्रदानसंज्ञा तथा चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग | ४. विष्णुमित्राय गां धारयते । विष्णुमित्र को गाय देना स्वीकार किया गया है, अतः विष्णुमित्र की प्रकृत सूत्र से संप्रदानसंज्ञा तथा चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग। [विशेष] १. कातन्त्रकार के अनुसार 'छात्राय श्लाघते, छात्राय हुते, छात्राय तिष्ठते कुमारी, छात्राय शपते, पुष्पेभ्यः स्पृहयति, छात्राय राध्यति, छात्रायेक्षते, छात्राय प्रतिशृणोति छात्राय आशृणोति' में सम्प्रदानसंज्ञा करना आवश्यक न मानकर "तादर्थे चतुर्थी" (२।४।२७) से सीधे चतुर्थी विभक्ति की गई है। २. 'छात्राय क्रुध्यति, मित्राय द्रुह्यति, मित्रायेय॒ते, मित्रायासूयति' में चतुर्थी के विधानार्थ “यस्मै कुप्यतीति वक्तव्यम्" यह वार्तिक वचन स्वीकार किया गया है ।।२९५। २९६. य आधारस्तदधिकरणम् [२।४।११] [सूत्रार्थ] क्रिया के आधार की अधिकरणसंज्ञा होती है ।।२९६।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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