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________________ ७४० कातन्त्रव्याकरणम् ० ० ११८१. श्लोकः १२ | १२०४. संबन्धविवक्षापि १८० ११८२. श्लोकपूरणत्वात् ५३९ | १२०५. संबन्धविवक्षायाम् १३९, १७९ ११८३. श्लोकपूरणार्थम् २७७ | १२०६. संबन्धानुकूलव्यापारः ५० ११८४. श्लोकरूपतया ५३८ | १२०७. संबन्धाभिधानम् १८७ ११८५. श्लोकसमुदायाः ४३५ | १२०८. संबन्धिशब्दः २५६ ११८६. षडनुबन्धः | १२०९. संबन्धोऽन्योऽन्यमिष्यते १२९ ११८७. षष्ठीप्रतिपत्त्यर्थम् २०५ | १२१०. संबोधने च प्रथमा १०६ ११८८. संकल्पः ५२ | १२११. संबोधनोपायाः २५५ ११८९. संकोचदर्शनात् | १२१२. संभाषते छात्रो भार्याम् ७५ ११९०. संख्या २५५, ४९६ | १२१३. संभ्रान्तिज्ञानम् १९१, ११९१. संख्याकर्मादयः १९२,१९४ ११९२. संख्याभेदः २५६ | १२१४. संयोगः ५९, ६३, ८४ ११९३. संख्याम् ११६ | १२१५. संयोगनिवृत्तिः ३० ११९४. संज्ञाप्रतिपादनार्थम् ११९ | १२१६. संयोगसंबन्धः ५० ११९५. संज्ञार्थम् ५४५ | १२१७. संशये तु सदा बहुवचनं ११९६. संज्ञाशब्दः २० | प्रयुज्यते ११९७. संज्ञासाधनान्येव २५७ १२१८. संस्कारः ४५३ ११९८. संज्ञास्तु लोकत एव १२१९. संस्थानेन ५०५ प्रतिपत्तव्याः १४८, १५१ / १२२०. संक्षेपः ५३, ८१, ९४, १०९, ११९९. संप्रदानलक्षणम् ५३ २५६,२६८, २७७, १२००. संबन्धः ३६, ४९, १२१, ___ १८५, २६५ १२२१. संक्षेपार्थः ५२, ३३१ १२०१ संबन्धः कारकेभ्योऽन्यः १२९ | १२२२. सकर्मकता १२०२. संबन्धविवक्षया १९१ | १२२३. सकर्मकत्वम् १२०३. संबन्धविवक्षा ३१,१९४, १२२४. सकर्मका एव भवन्ति ७९ १९८,२०७, ३३६ | १२२५. सकृदुच्चरितः शब्दः ८६ ३४६
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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