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________________ ५५० कातन्त्रव्याकरणम् [रूपसिद्धि] १. वैयसनः । व्यसने भवः । व्यसन +अण् +सि । “एवमादेरणिष्यते' (२/६/ ७) से अण् प्रत्यय, ण् अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से ऐ वृद्धि का आगम तथा विभक्तिकार्य । २. वैयुदयः । व्युदयस्यापत्यम् । व्युदय +अण् +सि । “वाणपत्ये" (२/६/१) से अण् प्रत्यय, अनुबन्ध ण् का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से वृद्धि (ऐ) का आगम तथा विभक्तिकार्य । ३. सौवश्विः । स्वश्वस्यापत्यन् । स्वश्व +इण् +सि | "इणतः' (२/६/५) से इण् प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से औ वृद्धि का आगम "इवर्णावर्णयोर्लोपः स्वरे प्रत्यये ये च' (२/६/४४) से अकार का लोप एवं विभक्तिकार्य । ४. वैयाकरणः। व्याकरणमधीते वेत्ति वा । व्याकरण +अण् +सि । “तद् वेत्त्यधीते" (२/६/७) से अण् प्रत्यय, ण् अनुबन्ध का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से ऐ वृद्धि का आगम, "इवर्णावर्णयोर्लोपः स्वरे प्रत्यये ये च" (२/६/४४) से अकार का लोप, लिङ्गसंज्ञा, सिप्रत्यय तथा "रेफसोर्विसर्जनीयः' (२/३/६३) से स् को विसगदिश । ५. दौवारिकः । द्वारेण दीव्यति संसृष्टो वा । द्वार +इकण् +सि | "तेन दीव्यति संसृष्टं तरतीकण चरत्यपि' (२/६/८) से इकण् प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से औ वृद्धि का आगम, अकारलोप तथा विभक्तिकार्य ।। ४१६। ॥ इति कातन्त्रव्याकरणे नामचतुष्टयाध्याये समीक्षात्मकः षष्ठस्तद्धितपादः समाप्तः॥ ॥समाप्तश्च नामचतुष्टयाख्यो द्वितीयाध्यायः॥
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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