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________________ ४७१ नामचतुष्टयाध्याये षष्ठस्तद्धितपादः उपसर्गाच्छन्दसि धात्वर्थे' (अ० ५/१/११५-१८), जबकि शर्ववर्मा ने प्रकृत एक ही सूत्र से सर्वत्र निर्वाह किया है । इस लाघव के अतिरिक्त दूसरी विशेषता यह है कि वृत्तिकार दुर्गसिंह ने गुणसाम्य तथा द्रव्यसाम्य में क्रिया का भी साम्य स्वीकार किया है, अतः उनके अनुसार 'देवदत्त इव गोमान्' इस द्रव्यसाम्य में तथा 'देवदत्त इव स्थूलः' इस गुणसाम्य में भी वतिप्रत्यय प्रवृत्त होता है - देवदत्तवत् । उनका वचन है - 'सद्भावात् क्रियासाम्यमस्तीति सर्वत्र भवितव्यमेव' (दु० वृ०) ।काशिकाकार आदि पाणिनीयव्याख्याकार "तेन तुल्यं क्रिया चेद् वतिः' इस सूत्र में 'क्रिया' शब्द के पाठ से गुण - द्रव्य की तुल्यता में वतिप्रत्यय को स्वीकार नहीं करते – “क्रियाग्रहणं किम् ? गुणद्रव्यतुल्ये मा भूत्" (का० वृ०) । वृत्तिकार ने गुणसाम्य के अन्तर्गत गुणहीनता का भी समावेश किया है - 'गुणहीनादपि अन्धवत्, जडवत्' । [विशेष वचन] १. सद्भावात् क्रियासाम्यमस्तीति सर्वत्र भवितव्यमेव (दु० वृ०)। २. यद्यपि येनोपमीयते यच्चोपमीयते ताभ्यामौपम्यं संभवति, तथाप्यप्रधानादेव वतिरिववत् प्रवर्तते प्रधानस्य क्रियाभिसंबन्धात् (दु० टी०)। ३. न हि पदार्थः सत्तां जहाति इति सर्वत्र क्रियासाम्यमस्तीति भवितव्यम् (दु० टी०)। ४. सतो भावः सद्भावः सत्ता सा च भवतेरर्थस्येहापि संभवात् । अतः क्रियासाम्यमस्तीति सर्वत्र भवितव्यमेवेति (वि० प०; क० च०)। ५. तेनेति तृतीयान्तात् क्रियासाम्ये तत्र सप्तम्यन्तात् षष्ठ्यन्ताच्च इवार्थे वत्यर्थं सूत्रद्वयं न कर्तव्यमिति दर्शितम्, व्यावृत्तेरभावात् (वि० प०)। [रूपसिद्धि] १. राजवत् । राजेव वर्तते, राज्ञेव व्यवहृतमनेन । राजन् +वति +सि । प्रकृत सूत्र द्वारा सादृश्यार्थ में वति प्रत्यय, इकार के उच्चारणार्थ होने से उसका प्रयोगाभाव, लिङ्गसंज्ञा, प्रथमा - एकवचन में सिप्रत्यय, वतिप्रत्ययान्त शब्द के अव्यय होने से "अव्ययाच्च' (२/४/४) से सिप्रत्यय का लुक् । २.ब्राह्मणवत् । ब्राह्मणस्येव वृत्तिरस्य, ब्राह्मणायेव देवदत्ताय ददाति । ब्राह्मण + वति +सि | प्रकृत सूत्र द्वारा वतिप्रत्यय आदि समस्त प्रक्रिया पूर्ववत् ।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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