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________________ ३९० कातन्त्रव्याकरणम् वृत्तिकृता प्रत्युदाहृतमिति भावः । 'सर्वाबाधाप्रशमनम्' (दु० स० श० ११ / ३९) इत्यत्र वत्करणस्य स्वाश्रयार्थत्वात् पुंवन्न स्यात् || ३५७ | [समीक्षा] संज्ञाशब्द, पूरणप्रत्ययान्त शब्द तथा कोपध शब्दों में उक्त सूत्र से पुंवद्भाव का निषेध निर्दिष्ट होने से 'दत्तभार्या, पञ्चमभार्या, पाचकभार्या' आदि में पुंवद्भाव नहीं हो सकता था, कर्मधारयसमास में उसके विधानार्थ दोनों व्याकरणों में पृथक् सूत्र बनाए गए हैं । पाणिनि का सूत्र है " पुंवत् कर्मधारयजातीयदेशीयेषु " ( अ० ६/३/४२) । [रूपसिद्धि] १. कठभार्या । कठी च सा भार्या च । कठी + सि + भार्या + सि । कर्मधारयसमास, विभक्तिलोप, प्रकृत सूत्र द्वारा 'कठी' शब्द को पुंवद्भाव तथा विभक्तिकार्य । २. दत्तभार्या । दत्ता च सा भार्या च । दत्ता + सि + भार्या + सि । कर्मधारयसमासादि तथा प्रकृत सूत्र से 'दत्ता' शब्द को पुंवद्भाव | ३. पञ्चमभार्या । पञ्चमी च सा भार्या च । पञ्चमी + सि + भार्या + सि । कर्मधारय समास आदि, उक्त सूत्र से पूरणप्रत्ययान्त पञ्चमीशब्द में प्राप्त पुंवद्भाव का निषेध एवं प्रकृत सूत्र से उसका विधान । ४. पाचकभार्या । पाचिका च सा भार्या च । पाचिका + सि + भार्या + सि ! कर्मधारय समास आदि, ककारोपध 'पाचिका' शब्द में उक्त सूत्र से पुंवद्भाव का निषेध प्राप्त एवं से उसका विधान || ३५७ | ३५८. आकारो महतः कार्यस्तुल्याधिकरणे पदे [ २/५/२१] [सूत्रार्थ] तुल्याधिकरण पद के परे रहते 'महन्त्' शब्द के अन्त्यावयव 'तू' के स्थान में आकारादेश होता है || ३५८ | [दु० वृ०] महादेवः, महावक्त्रः । अन्तरङ्गत्वान्नलोपे सत्याकारच्च्यन्तस्य न भवति - महद्भूतश्चन्द्रमाः। योगविभागाद् महत्या घास : महाघासः, एवं महाकरः, महाविशिष्टः || ३५८ ।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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