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________________ नामचतुष्टयाध्याये पचमः समासपादः ३४९ [समीक्षा] कातन्त्रकार ने दो ही सूत्रों (प्रकृत सूत्र तथा अग्रिम सूत्र) द्वारा ‘आरूढवानरो वृक्षः, बहूदका नदी, पञ्चकाः शकुनयः, द्वित्राः, केशाकेशि' आदि शब्दों में बहुव्रीहि समास का विधान करते हैं, जबकि पाणिनि ने छह सूत्र बनाए हैं - "शेषो बहुव्रीहि. ..तेन सहेति तुल्यययोगे" (अ० २।२।२३-२८)। व्याख्याकारों ने 'सहैव दशाभिः पुत्र र वहति गर्दभी' आदि में समास की अप्रवृत्रि लोकाभिधान के आधार पर मानी है। इस प्रकार पाणिनीय व्याकरण में गौरव स्पष्ट है। [विशेष वचन] १. वाक्ये यानि पदानि विशेषणत्वेन विशेष्येऽन्यपदार्थे वर्तन्ते, तान्येव वृत्तौ सविशेषणस्यान्यपदार्थस्य वाचकानि स्वभावात् (दु० टी०)। २. सामान्यमपीह विशेषतुल्यम, व्यावर्तकत्वात् (दु० टी०)। ३. 'द्वित्रा' इति वाऽर्थेऽस्याभिधानम् । वाऽर्थस्तु न विकल्पः, किन्तर्हि संशयः । विकल्पे हि यदा द्वौ भवतस्तदा बहुवचनं न स्यात् । संशये तु सदा बहुवचनं प्रयुज्यत एव (वि० प०)। ४. तथा चोक्तं भाष्ये - अविज्ञातेऽर्थे बहुवचनं प्रयोक्तव्यम् (वि० प०)। ५. इतिशब्दो लौकिकविवक्षार्थः । तेन ग्रहणप्रहरणोपाधिोके प्रसिद्धत्वाल्लभ्यत इत्यर्थः (क० च०)। [रूपसिद्धि] १. आरूढवानरो वृक्षः। आरूढो वानरो यं सः । आरूढ + सि +वानर + सि । "नाम्नां समासो युक्तार्थः" (२।५।१) से समास संज्ञा, प्रकृत सूत्र से बहुव्रीहि समास, "तत्स्था लोप्या विभक्तयः' (२।५।२) से विभक्तिलोप, “धातुविभक्तिवर्जमर्थवल्लिङ्गम्' (२।१।१) से लिङ्ग संज्ञा, प्रथमविभक्ति - एकवचन में सिप्रत्यय, तथा "रेफसोर्विसर्जनीयः" (२।३।६३) से विसगदिश । इस समास के २३ अन्य भी उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं ।। ३४६।
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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