SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० कातन्त्रव्याकरणम् [विशेष] १. क्रिया में योग्यतामात्र की विवक्षा से संबन्ध में षष्ठी नहीं हो सकती, अतः यह कथन सङ्गत नहीं हो सकता किं संबन्ध में षष्ठी के सिद्ध होने पर प्रकृत सूत्र बनाना अनावश्यक है । समुचित समाधान यही है कि हेत्वर्थ में प्राप्त तृतीया (२।४।३०) के बाधनार्थ यह सूत्र किया गया है - "हेत्वर्थे तृतीयाप्राप्ते वचनम्” (दु० वृ०)। २. क्रियासु योग्यतामात्रविवक्षायां संबन्धे षष्ठी नास्ति (दु० टी०)। ३. 'सा चेयं षष्ठी हेत्वर्थे वर्तमानादेव हेतौ द्योत्ये विधीयमाना हेतुशब्दसमानाधिकरणाद् भवति' इति द्योतनाय समर्था हेतुशब्दादप्यर्थाद् भवति (दु०. टी०)। ४. षष्ठीहेतुनेति कृते सिद्धे प्रयोगग्रहणं सुखप्रतिपत्त्यर्थम् (दु० टी०)। ५. सर्वनाम्नो हेतुप्रयोगे सर्वा विभक्तयो वाच्याः (दु० टी०)। [रूपसिद्धि] १. अनस्य हेतोर्वसति । अन्न के कारण निवास करता है । यहाँ निवास का हेतु अन्न है । अतः हेत्वर्थ के द्योत्य रहने से प्रकृत सूत्र द्वारा षष्ठी विभक्ति का प्रयोग । अन्न + ङस् । “ङस् स्य" (२।१।२२) से इस्-प्रत्यय को 'स्य' आदेश । यहाँ अन्न शब्द हेतु का विशेषण है । अतः विशेषणवाची अन्नशब्द में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किए जाने पर विशेष्यवाची हेतुशब्द में षष्ठी का विधान अर्थतः उपपन्न होता है । हेत्वर्थ के द्योत्य होने से ‘हेत्वर्थे" (२।४।३०) सूत्र द्वारा तृतीया प्राप्त होती है, उसके निषेधार्थ (बाधकर) प्रकृत सूत्र से षष्ठी की गई है ।।३२२ । ३२३. स्मृत्यर्थकर्मणि [२।४।३८] [सूत्रार्थ] स्मरणार्थक धातुओं के प्रयोग में उनके कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है ।। ३२३। [दु० वृ०] स्मरणार्थानां धातूनां प्रयोगे कर्मणि षष्ठी भवति । मातुः स्मरति । पितुरध्येति । उत्तरत्र नित्यग्रहणादनित्यमपि प्रकरणेऽस्मिन् मातरं स्मरति । कथं माता स्मर्यते ?
SR No.023088
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year1999
Total Pages806
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy